________________
विदलितसकलारिकुलं (अ.) ६४६, ३९४. व्रजत व तात (अ.) २७३, २२२.
[रु. का. लं. अ. ७. 'लो. २८] [शि. व. स. १५ *लो. ८७ ] विद्वान्दारसखः परं (वि.) ३५७, २४९. शक्तिर्निस्त्रिंशजेयं (अ.) २३९, २१०. विपदोऽभिभवन्त्यविक्रम(म.)२६५,२१९. [सुभाषितावली 'लो. २५९६ ]
[कि. स. २. लो. १४ ] शङ्खद्रावितकेतकोदर (वि.) ७८, २४. विपुलेन सागरशयस्य (अ.) ६०१, ३७६. शत्रुच्छेददृढेच्छस्य (अ.) ५६६, ३६७.
[शि. व. स. १३. श्लो. ४० ] शनिरशनिश्च (अ.) ६०, ६७. विभजन्ते न ये (अ.) ३१६, २३६. शंभोः केयं (वि.) ४५०, २८८. विमानपर्यङ्कतले (अ.) १९३, १६३.
[मु. रा. अं. १. लो. १] विमुक्तबही विमदा (वि.) २७७, १९१. शय्या शावलमासन (अ.) ३४९, २४४. वियति विसर्पतीव (अ.) ५२९, ३४८.
[ना. अं. ४. लो. २ ] विलसदमरनारी (अ.) ६३०, ३८९. . शरदिन्दुसुन्दरमुखी (अ.) ५०८, ३४३. विलासभूमिः सकलामराणा(वि.)२२७,१८२. शरीरमात्रमात्मानं (वि.) १८, ९. विवरीयरए लच्छी (वि.) १३८, ५२. | शशिवदना (अ.) ६६८, ४००.
[स. श. ८१५] | शशी दिवसधूसरो (वि.) ५६४, ३९३. विविच्य बाधाः (वि.) ४५१, २८८.
[भ. नी. श. 'लो. ४५ ] विविधधववना (वि.) ४५९, २९८. शाखास्मेरं (वि.) २४३, १८६. [का. लं. सू. ४. १. २. हरिप्रबोधादुद्धतः] / शिखरिणि क (वि.) १४२, ७३. विवृद्धात्माप्यगाधो (वि.) १५६, ९२. शिञानमञ्जमञ्जीराः (अ.) ४२१, २८९. विषं निजगले येन (अ.) ४८४, ३२८. | शिरामुखैः स्यन्दत (अ.) ६८४, ४०९. वृद्धास्तेन विचारणीयचरिताः(अ)१५४,१४२ . [ना. अं. ५. 'लो. ६३.]
[उ. रा. च. अं. ५. लो. ३५] | शिरीषादपि (अ.) ६००, ३७६. वेणीभूतप्रतनुसलिला (अ.) १५८, १४८. | [ नवसा च. स. १६. 'लो. १८]
[मे. दृ. पू. लो. २९] | शीतांशोरमृतच्छटा (अ.) ४१४, २७१. वेदापन्ने स शुक्ले (वि.) ४८६, ३१० शीर्णघ्राणांहिपाणोन (अ.) ३४०, २४१, वैधेरैनैशै (वि.) ४७९, ३०७.
[सू. श. लो. ६ ] व्यपोहितु लोचनतो (अ.) ७३४, ४२८. शीर्णपर्णाम्बु (अ.) ६१८, ३८३.
[कि. स. ८. लो. १९.] . [उ. लं. व. २. पृ. ३७] व्यर्थ यत्र (अ.) १२७, १३१. शून्यं वासगृहं (अ.) १, ३४. [उ. रा. च. अं. ३, लो. ४६ ] |
[अ. श. ८२ ] व्यालवन्तो (वि.) ५६०, ३८६. शूलं शलन्तु शं (अ.) ४८९, ३३१. व्योम तारतरतारकोत्करे(वि.) २६५, १८९. [ रुद्रट काम्यालंकार अ. ४ श्लो. १०]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org