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________________ अयं स भुवनः (नि.) १२४. ३३. अलिवलयैरलकै (अ.) ५२१. ३४७. अयं स रसनो (अ.) १७२. १५२. [रु. का. ८-३०] . म. भ. स्त्री. प. अ. २४. श्लो. १९] अलोलकमले (अ.) ४९३. ३३२. अयि जीवित १११. ११६. [दे. श. *लो. ७४ ] [कु. सं. स. ४. लो. ३] अलौकिकमहा (वि.) ५३५. ३३०. अयि दियर (अ.) ५६८. ३६८ अवन्तिनाथो (वि.) ३५६. २४९. [स, श. ५७१; गा. स. श. ६७० ] अवितथमनो (वि.) ५३९. ३४२. भयि पश्यसि (अ.) २४८. २१४. अविरलकमल (वि.) ५४०. ३९७. अरण्ये निर्जने (वि.) ४६. १७. अविरलकरवाल (वि.) १८१. १५३. भरातिविक्रम (अ.) ५१५. ३४५. अवीनादौ (वि.) ३६. १५. भरुचिनिशया (वि.) ५७४. ४८२. असूच्यत शरत् (वि.) ३२७. १९७. अरे रामाहस्ता (अ.) ४१९, २७२. असतामहितो (वि.) ४७६. ३०६. अथित्वे प्रकटी (अ.) ३७५. ०६२. असंतोषादिवाकृष्ट (अ.) ५०८. ३४८. [म. च. अं. २. लो. ९.]| असंशयं क्षत्र (अ.) १२४. १३०. अलमलमतिमात्रं (वि.) ६०३. ४५४. [अ. शा. अं. १ *लो. १९] [र. अं. ३. *लो. ९७] असावुदयमारूढः (अ.) ४८६. ३२८. अलसललित (अ.) १४३. १३७. [ का. द. परि. २. लो. ३.११.] [उ. रा. च. अं. १ श्लो. २४] असिमात्रसहायो (अ.) ६१७. ३८३. भलसवलित (अ) २०३. २००. असोढा तत्कालो (वि.) १८३. १५३. . [अ. श. श्लो. ४ असौ मरुवम्बित (अ.) ३५७. २४७. अलंकारः शङ्का (अ) ४७८. ३२४. [ह. ना. अं. ६. ]. अलंकृत जटा (वि) १२७. ३५. अस्त्युत्तरस्या (वि.) २३६. १८५; ४०९. अलं स्थित्वा (अ.) ७८. ८१. २७८. [ कु. सं. स. १ 'लो. १] [म.भा. शा. प. अ. १५२लो . ११ (a) | अस्मद्भाग्य (अ.) ४३. ६४. .. १२ (a)] || अस्माकमद्य (अ.) २९६. २२९. अलिकुलकुम्तल (अ.) ५४३. ३५३. | अस्मान्साधु (अ.) १४२. ५३६. [रु. का. ८. ४५] [अ. शा. अं. ४,लो. १६] भलिनीलालक (वि.) ४८५. ३१०. अस्मिजहीहि (वि.) ५७८. ४०४. [का. द. परि. ३ 'लो. ८१] [भामहालंकार परि. ३. लो. ५६] अलिमिरजन (अ.) २२६. २०५. । अस्मिन्नेव लता (अ.) १०४. ११२. र. . स. ९.लो. ४१] [उ. रा: च. सं. ३ 'लो. ३८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001066
Book TitleKavyanushasana Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRasiklal C Parikh
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1938
Total Pages631
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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