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________________ (जिसे बाण ने जलकर्मान्तिक लिखा है), णावाधियक्ख (नावाध्यक्ष ), सुवर्णाध्यक्ष, हथिअधिगत, 'अस्सअधिगत, योग्गायरिय (योग्याचार्य अर्थात् योग्या या शस्त्राभ्यास करानेवाला ), गोवयक्ख (गवाध्यक्ष ), पडिहार (प्रतिहार), गणिक खंस (गणिकाओं या वेश का अधिकारी), बलगणक (सेना में आर्थिक हिसाब रखनेवाला) वरिसधर (वर्षधर या अन्तःपुर में कार्य करनेवाला ), बत्थुपारिसद (वास्तुपार्षद), आरामपाल ( उद्यानपाल ), पच्चंतपाल (प्रत्यंत या सीमाप्रदेश का अधिकारी ), दूत, सन्धिपाल ( सान्धिविग्रहिक ), सीसारक्ख (राजा का सबसे निकट का अंगरक्षक), पतिआरक्ख (राजा का आरक्षक ), सुंकसालिअ (शौल्कशालिक या चुंगीघर का अधिकारी), रज्जक, पधवावत (पथव्यापृत), आडविक (आटविक), णगराधियक्ख ( नगराध्यक्ष), सुसाणवावट (श्मशान व्यापृत) -सूणावावत, चारकपाल (गुप्तचर अधिकारी) फलाधियक्ख, पुप्फाधियक्ख, पुरोहित, आयुधाकारिक, सेणापति, कोट्ठाकारिक ( कोष्ठागारिक ) (पृ० १५९) । __ अट्ठाईसवें अध्याय में उस समय के पेशेवर लोगों की लम्बी सूची आई है। आरंभ में पाँच प्रकार के कर्म या पेशे कहे हैं जैसे रायपुरिस ( राजपुरुष), ववहार (व्यापार वाणिज्य), कसि गोरक्ख (कृषि और गोरक्षा) कारुकम्म ( अपने हाथ से उद्योग धन्धे करने वाले शिल्पी और पेशेवर लोग ), भतिकम्म (मजदूरी पेशा । राजपुरुषों के ये नाम हैं- रायामञ्च (राजामात्य), अस्सवारिक (अश्वाध्यक्ष जैसा उच्च अधिकारी), आसवारिय (घुड़सवार जैसा सामान्य अधिकारी जिसे पउमचरिय ६८७ में असवार कहा गया है), णायक, अब्भंतरावचर, अब्भाकारिय (अभ्यागारिक), भाण्डागारिय, सीसारक्ख, पडिहारक, सूत, महाणसिक, मज्जघरिय, पाणीयघरिय, हत्थाधियक्ख (हस्त्यध्यक्ष), महामत्त (महामात्र ), हत्थिमेंठ, अस्साधियक्ख, अस्सारोध, अस्सबन्धक, छागलिक, गोपाल, महिसीपाल, उट्टपाल, मगजुद्धग ( मृगलुब्धक ), ओरब्भिक ( औरभ्रिक ), अहिनिप ( संभवतः अहितुंडिक या गारुडिक ) । राजपुरुषों में विशेष रूप से इनका परिगगन है-अस्सातियक्ख, हत्थाधियक्ख, हत्थारोह ( हस्त्यारोह ), हत्थिमहामत्तो, गोसंखी (जिसे पाणिनि और महाभारत में गोसंख्य कहा गया है), गजाधिति, भाण्डागारिक, कोषरक्षक, सव्वाधिकत ( सर्वाधिकृत ), लेखक (सर्वलिपिओं का ज्ञाता ) गणक, पुरोहित, संवच्छर ( सांवत्सरिक ), दाराधिगत ( द्वारपाल, दौवारिक ), बलगगक, सेनापति, अब्भागारिक, गणिकाखंसक, वरिसधर, वत्थाधिगत ( वस्त्राधिकृत, तोशाखाने का अध्यक्ष ), जगरगुत्तिय, (नगरगुप्तिक, नगरगुप्ति या पुररक्षा का अधिकारी), दूत, जइणक ( जविनक या जंघाकर जो सौ सौ योजन तक संदेश पहुँचाते या पत्रवाहक का काम करते थे ), पेसण कारक, पतिहारक, तरपअट्ट ( तरप्रवृत्त), णावाधिगत, तित्थपाल, पाणियपरिय, ण्हाणघरिय, सुराघरिय, कट्ठाधिकत (काष्ठाधिकृत) तणाधिकत ( तृणाधिकृत ), बीजपाल, ओपसेजिक (औपशय्यिक-शय्यापाल, राजा की शय्या का रक्षक), सीसारक्ख ( मुख्य अंगरक्षक ), आरामाधिगत नगररक्ख, अब्भागारिय, असोकवणिकापाल, वाणाधिगत, आभरणाधिगत । राज्य के अधिकारियों की इस सूचि के कितने ही नाम पहले भी आ चुके हैं। कुछ नये भी हैं। प्राचीन भारतीय शासन की दृष्टि से यह सामग्री अत्यन्त उपयोगी कही जा सकती है। प्रायः ये ही अधिकारी राजमहलों में और शासन में बहुत बाद तक बने रहे। इसके बाद सामान्य पेशों की एक बड़ी सूची दी गई है। जैसे ववहारि ( व्यवहारी, उदकवकि (नाव या जहाज बनाने वाला ), मच्छबन्ध, नाविक, बाहुविक (डाँड चलाने वाले ), सुवण्णकार, अलित्तकार (आलता बनाने. वाला ), रत्तरजक ( लाल रंग की रंगाई का विशेषज्ञ), देवड ( देवपटबिक्रेता.), उण्णवाणिय, सुत्तवाणिय,. जतुकार, चित्तकार, (चित्रकार), चित्तवाजी (चित्रवाद्य जानने वाला ), तट्ठकार ( ठठेरा), सुद्धरजक, लोहकार, सीतपेट्टक ( संभवतः दूध दही के भांडों को बरफ में लपेट कर रखने वाला.), कुंभकार, मणिकार संखकार, कंसकार, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001065
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year1957
Total Pages487
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size15 MB
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