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________________ २६ १५००-८ १५०९ १५१० १५११ १५१२-१८ १५१९-२० १५२१-२८ १५२९-३० १५३१ १५३२-३७ १५३८-५२ १५५३-५७ १५५८-६२ १५६३-६८ १५६९-७० १५७१ १५७२-७६ १५७७-८२ Jain Education International अंगविनापण्यं ( १०५) ग्यारह स्थूल ग्यारह स्थूल अंगों के नाम, फलादेश और एकार्थक ( १०६ ) नव उपस्थूल अंग ( १०७ ) पचीस युक्तोपचय अंग ( १०८ ) बीस अल्पोपचय अंग और ( १०९ ) बीस नातिकृश अंग ( ११० सतरह कृश सतरह कृश अंगों के नाम और समानार्थक ( १११ ) ग्यारह परंपरकुश ग्यारह परं परकृश अंगों के नाम और फलादेश (११२) छब्बीस दीर्घ छब्बीस दीर्घ अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक ( ११३ ) छब्बीस युक्तप्रमाण दीर्घ अंग ( ११४ ) सोलह हस्व किंचिद्दीर्घ अंग ( ११५ ) सोलह हृस्व सोलह हस्व अंगों के नामोंका अतिदेश और समानार्थक ( ११६ ) दस परिमंडल दस परिमंडल अंगों के नाम और एकार्थक ( ११७ ) चौदह करणमंडल ( ११८ ) बीस वृत्त बीस वृत्त अंगों के नाम और समानार्थक ( ११९ ) बारह पृथु बारह पृथु अंगों के नाम और एकार्थक ( १२० ) इकतालीस चतुरस्र अंग ( १२१ ) दो यत्र अंग ( १२२ ) पांच काय अंग ( १२३ ) सत्ताईस तनु और ( १२४ ) इक्कीस परमतनु सत्ताईस तनु और इक्कीस परमतनु अंगों के नाम और समानार्थक ११३-१४ For Private Personal Use Only ११४ ११४ ११४ ११४ ११४-१५ ११५ ११५ ११५ ११५-१६ ११६ ११६ ११६ ११६-१७ ११७ ११७ ११७ ११७ www.jainelibrary.org
SR No.001065
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year1957
Total Pages487
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size15 MB
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