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________________ प्रस्तावना १५ आदिका उपयोग होता था, लोगोंकी आजीविका किस-किस व्यापारसे चलती थी, प्रजामें कैसे-कैसे अधिकार और आधिपत्यका व्यवहार था, उनके स्थान शायन-आसन - तकिया यान- वाइन- बरतन - गृहोपस्कर कैसे थे, लोगों के वेष-विभूषा अलंकार - इत्र- तैलादिविषयक शौक किस प्रकारका था, लोगों का व्यापार किस किस प्रकारके सिक्कोंके आदान-प्रदानसे चलता था, लोगों के खाद्य पेय पदार्थ क्या क्या थे, लोकसमूहमें कौनसे उत्सव प्रवर्त्तमान थे, लोगों को कौनसे रोग होते थे ? ये और इनके अतिरिक्त दूसरी बहुतसी बातोंका पृथक्करण विगण अपने आप ही कर सकता है । अंगविज्जा ग्रन्थका अध्ययन और अनुवाद कुछ विद्वानों का कहना है कि इस ग्रन्थका अनुवाद किया जाय तो अच्छा हो । मन्तव्य इस प्रकार है जबतक इसकी परिभागका पता न लगाया इसलिये इस ग्रन्थके अनुवादकको प्रथम फलादेशविषयक यह ग्रन्थ एक पारिभाषिक ग्रन्थ है । जाय तबतक इस ग्रन्थके शाब्दिक मात्र अनुवादका कोई महत्व नहीं है । तो इसकी परिभाषाका पता लगाना होगा और एतद्वि यक अन्यान्य ग्रन्थ देखने होंगे। जैसे कि इस ग्रन्थके अंत में प्रथम परिशिष्ट रूपसे छपे हुए ग्रन्थ जैसे ग्रन्थ और उसकी व्याख्या में निर्दिष्ट पराशरी संहिता जैसे ग्रन्थोंका गहराई से अवलोकन करना होगा । इतना करनेपर भी ग्रन्थ की परिभाषाका ज्ञान यह महत्त्वको बात है । अगर इसकी परिभाषाका पता न लगा तो सब अवलोकन व्यर्थप्राय है और तात्त्विक अनुवाद करना अशक्य- सी बात है । दूसरी बात यह भी है कि यह ग्रन्थ यथासाधन यद्यपि काफी प्रमाण में शुद्ध हो चुका है, फिर भी फलादेश करनेकी अपेक्षा इसका संशोधन अपूर्ण ही है । चिरकाल से इसका अध्ययन-अध्यापन न होनेके कारण इस ग्रन्थमें अब भी काफी त्रुटियाँ वर्त्तमान हैं। जैसे कि ग्रन्थ कई जगह खंडित है, अङ्ग आदिको संख्या सब जगह बराबर नहीं मिलती और सम-विषम भी हैं, इसमें निर्दिष्ट पदार्थों की पहचान भी बराबर नहीं होती है, अङ्गशास्त्र के साथ सम्बन्ध रखनेवाले पदार्थोंका फलादेश में क्या और कैसा उपयोग है ? इसकी परिभाषाका कोई पता नहीं है । इस तरह इस ग्रन्थका वास्तविक अनुवाद करना हो तो इस ग्रन्थका साद्यन्त अध्ययन, आनुषङ्गिक ग्रन्थोंका अवलोकन और एतद्विषयक परिभाषाका ज्ञान होना नितान्त आवश्यक है । इस विषय में मेरा आभार स्वीकार इस ग्रन्थके संशोधनके लिये जिन महानुभावोंने अपने ज्ञानभंडारोंकी महामूल्य हाथपोथियाँ भेजकर और चिरकालतक धीरज रखकर साहाय्य किया है उनका धन्यवाद पुरःसर मैं आभारी हूँ । साथ साथ पाटली निवासी पंडित भाइ श्री नगीनदास केशलशी शाह, जिन्होंने इस ग्रन्थको प्राचीन प्रतियों के आधारपर विश्वस्त नकल (प्रेसकोपी) करना, कई प्रतियोंके विश्वस्त पाठभेद लेना, ए प्रूफपत्रोंको प्रेसकापी और हाथपोथियोंके साथ मिलाना आदि द्वारा काफी साहाय्य किया है, उनको मैं अपने हृदयसे कभी नहीं भूल सकता हूँ । इसका साहाय्य मेरेको आदि से अन्ततक रहा है, जिसकी याद मेरे अन्तःकरण में जीवनभर रहेगी । अन्तमें मेरा इतना हो निवेदन है कि इस ग्रन्थ के संशोधनादिके लिये मैंने काफी परिश्रम किया है, फिर भी इस ग्रन्थ में त्रुटियाँ रह हो गई हैं, जिनका परिमार्जन विद्वद्वर्ग करे और जिन त्रुटियों का उन्हें पता चले -उनकी सूचना मेरेको देनेकी कृपा करें । जैन उपाश्रय मुनि पुण्यविजय लूणसा वाडा - अहमदाबाद Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001065
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year1957
Total Pages487
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size15 MB
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