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________________ २५३] उवक्कमाणुओगदारे छनामदारं। ११३ खओवसमनिप्पण्णे ३ अत्थि णामे उदइए पारिणामियनिप्पण्णे ४ अस्थि णामे उवसमिए खयनिप्पण्णे ५ अत्थि णामे उवसमिए खओवसमनिप्पन्ने ६ अस्थि णामे उवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ७ अत्थि णामे खइए खओवसमनिप्पन्ने ८ अत्थि णामे खइए पारिणामियनिप्पन्ने ९ अत्थि णामे खयोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने १०। २५३. कतरे से नामे उदइए उवसमनिप्पन्ने ? उदए ति मणूसे उवसंता कसाया, एस णं से णामे उदइए उवसमनिप्पन्ने १। कतरे से नामे उदइए खयनिप्पन्ने ? उदए ति मणूसे खतियं सम्मत्तं, एस णं से नामे उदइए खयनिप्पन्ने २। कतरे से णामे उदइए खयोवसमनिप्पन्ने? उदए त्ति मणूसे खयोवसमियाइं इंदियाइं, एस णं से णामे उदइए खयोवसमनिप्पन्ने ३। १० कतरे से णामे उदइए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए ति मणूसे पारिणामिए जीवे, एसणं से णामे उदइए पारिणामियनिप्पन्ने ४। कयरे से णामे उपसमिए खयनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं, एस णं से णामे उवसमिए खयनिप्पन्ने ५। कयरे से णामे उवसमिए खओवसमनिप्पण्णे ? उवसंता कसाया खओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे उवसमिए खओवसमनिप्पन्ने ६। १५ कयरे से णामे उवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ७। कतरे से णामे खइए खओवसमियनिप्पन्ने १ खइयं सम्मत्तं खयोवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे खइए खयोवसमनिप्पन्ने ८। कतरे से णामे खइए १. सान्निपातिकभनकसूत्रेषु सं० आदर्श पारिणामिय स्थाने पारिणाम परिणाम इत्येवं पाठभेदयुगलमप्यावृत्त्या दृश्यते ॥ । २. F- एतचिह्नान्तर्वतिपाठस्थाने सं० प्रतौ-एवं उवसमिएण वि अविरल्लेहिं सद्धिं दो संजोगा जाता, [.........] अस्थि णामे खोवसभिए परिणामनिप्फन्ने य, एवं दस संजोगा इतिरूपः खण्डितः पाठभेदो वर्तते ॥ ३. सान्निपातिकभङ्गकसूत्रेषु सं०आदर्शे सर्वत्र कतरे से स्थाने कतरे णं से इति पाठो वर्त्तते ॥ ४. सान्निपातिकभङ्गकसूत्रेषु सर्वास्वपि प्रतिषु आवृत्त्या उदइए उदए उदय उदये इति पाठभेदचतुष्कमुपलभ्यते, अस्माभिस्तु खं० प्रतौ यथादृष्ट एव पाठोऽत्राङ्गीकृत इति ॥ ५. खं० वा. विनाऽन्यत्र-°पण्णे ५ एवं ते चेव दस दुगा संजोगा उच्चारेऊण एतेहिं संजोएयव्वा जाव खओवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे एस गं से नामे खणोवसमिए परिणामनिष्पण्णे १० सं० । °फणे ५, एवं खमओवसमिएणं ६ पारिणामिएणं ७ एवं खइय-खओवसमियस्स ८ खिइय-]पारिणामियस्स ९ खओवसमियस्स पारिणामियस्स १० । संवा० वी० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001062
Book TitleNandisutt and Anuogaddaraim
Original Sutra AuthorDevvachak, Aryarakshit
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages764
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_nandisutra, & agam_anuyogdwar
File Size14 MB
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