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________________ अणुओगहारेसु [सु० २५४पारिणामियनिप्पन्ने १ खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे खइए पारिणामियनिप्पन्ने ९। कतरे से णामे खयोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? खयोवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे खयोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने १०। २५४. तत्थ णं जे ते दस तिर्गसंजोगा ते णं इमे-अत्यि णामे उदइए उपसमिए खयनिप्पन्ने १, अत्थिं णामे उदइए उवसमिए खओवसमनिप्पन्ने २, अत्थि णामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ३, अत्थि णामे उदइए खइए खओवसमनिप्पन्ने ४, अत्थि णाम उदयिए खइए पारिणामिय निप्पन्ने ५, अत्थि णामे उदइए खयोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ६, अत्थि णामे १० उवसमिए खइए खओवसमनिप्पन्ने ७, अत्थि णामे उवसमिए खइए पारिणामियनिप्पन्ने ८, अत्थि णामे उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ९, अत्थि णामे खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने १०।। २५५. कतरे से णामे उदइए उपसमिए खयनिष्पन्ने ? उदए ति मणूसे उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खयनिप्पन्ने १। कतरे से णामे उदइए उवसमिए खयोवसमियनिप्पन्ने ? उदए ति मणूसे उवसंता कसाया खयोवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खओवसमनिप्पन्ने २। कयरे से णामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ३। कयरे से णामे उदइए २० खइए खओवसमनिप्पन्ने ? उदए ति मणूसे खइयं सम्मत्तं खओवसमियाई इंदियाई, एस णं से णामे उदइए खइए खओवसमनिप्पन्ने ४। कतरे से १. तिया सं सं०॥ २. त्रिकसंयोगिभङ्गकदशकान्ते निप्पने स्थाने संवा० वी० आदर्शेषु निप्फने य इति पाठो वर्तते ॥ ३. उदभोवसमखमोव सं० ॥ १. - एतचिह्नमध्यवर्तिसूत्रपाठस्थाने-°निप्फने य । एवं उदइय उपसमिय खोवसमिय २ एवं उदइय उवसमिय पारिणामिय ३ एवं उदइय खतिय खओवसमिय ४ एवं उदइय खइय पारिणामिय ५ एवं उदइय खओवसमिय पारिणामिय ६ एवं उवसमिय खइय खोवसमिय ७ एवं उवसमिय खइय पारिणामिय ८ एवं उवसमिय खमोवसमिय पारिणामिय ९ एवं खइय खोवसमिय पारिणामिय १०। इतिरूपः पाठः संवा० वर्तते ॥ ५. खं० वा० विनाऽन्यत्रनिष्पण्णे २। एवं ते वेव दस तिया संजोगा उच्चारेऊण वाकरणपदेहिं संजोएतन्वा जाव' चरिमो संजोगो । कतरे से नामे खइए खोवसमिए परिणामनिष्पने? खइयं सम्मत्तं सं०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001062
Book TitleNandisutt and Anuogaddaraim
Original Sutra AuthorDevvachak, Aryarakshit
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages764
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_nandisutra, & agam_anuyogdwar
File Size14 MB
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