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________________ -२ : धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण ] दोनों की कसौटी है । भगवान् का उक्त जीवन तीनों काल में कभी पुराना या बासी होने वाला नहीं है । जैसे-जैसे उसका उपयोग करेंगे वैसे वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नित्यनूतन अरुणोदय के समान प्रकाशमान रहने वाला है और सच्चे साथी का काम करने वाला है। उन ब्राह्मण-क्षत्रिय महावीर का आचार अहिंसा की पारमार्थिक भूमि के आधार पर किस प्रकार घटित हुआ था और उनका विचार अनेकान्त की सत्य-दृष्टि को किस प्रकार स्पर्श करता था इसका हूबहू चित्र प्राचीन आगमों में जब देखते हैं तब नतमस्तक हो जाते हैं । मारो मारो करके कोई भी धँस आवे तो उसके प्रति मन से भी रोष न करना, उसके लेशमात्र अहित का चिन्तन न करना यही उनकी अहिंसा की विशेषता है। कैसे भी विरोधी दृष्टिबिन्दु और अभिप्रायों का प्रतिवाद करते हुए उनमें रहे हुए अत्यल्प सत्य को जरा सी भी उपेक्षा बिना किये ही सत्य की साधना को पूर्ण करना यही उनके अनेकान्त की विशेषता है । मेरे मन में निदिध्यासन की तृतीय भूमिका के फलस्वरूप महावीर का जो चित्र अंकित हुआ है या जो मूर्ति निर्मित हुई है उसकी आधारशिला श्रद्धा और बुद्धि का समन्वय मात्र है । इसमें श्रद्धा के चौके की संकीर्णता संशोधन के फलस्वरूप लुप्त हो गई है । उसका वर्तुल इतना विस्तीर्ण हुआ है कि अब उसमें जन्मगत संस्कार के आधार पर केवल महावीर का ही स्थान नहीं रहा है किन्तु उसमें महावीर के अलावा उनके तथाकथित प्रतिस्पर्धी और तद्व्यतिरिक्त ऐसे प्रत्येक धर्मपुरुष को स्थान मिला है । आज मेरी श्रद्धा किसी भी धर्मपुरुष के बहिष्कार करने को तत्पर हो ऐसी संकीर्ण नहीं रही है और बुद्धि भी किसी एक ही धर्मपुरुष के जीवन की जिज्ञासा करके ही कृतार्थता का अनुभव नहीं करती । जिस कारण से श्रद्धा और बुद्धि महावीर के आसपास गतिशील थे उसी कारण से वे दोनों आज बुद्ध, कृष्ण और क्राइस्ट आदि अनेक अतीत संतों के आसपास भी गतिशील रहते हैं । संशोधन और निदिध्यासन की भूमिका के - कारण ही मेरे मन में गांधीजी की व्यापक अहिंसा और अनेकान्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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