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________________ [चार तीर्थंकर : ८१ से मंत्र-तंत्र, जड़ी-बूटी, दैवी चमत्कार आदि असंगत प्रतोत होने वाले साधनों का उपयोग होता था । 1 1 गाँधीजी उपवास या अनशन करते थे तब संसार के बड़े से बड़े साम्राज्य के सूत्रधार व्याकुल हो उठते थे । गाँधीजो को जेल से मुक्त करते थे; फिर पकड़ लेते थे और दुबारा उपवास प्रारम्भ होने पर फिर छोड़ देते थे । देशभर में जहाँ गाँधी जो जाते थे वहाँवहाँ जनसमुद्र में ज्वार सा उमड़ आता था। कोई उनका अत्यन्त विरोधी भी जब उनके सामने जाता था तो एक बार तो मनोमुग्ध हो गर्वगलित हो ही जाता था । यह एक वास्तविक बात है, स्वाभाविक है और मनुष्यबुद्धिगम्य है । किन्तु यदि इसी बात को कोई दैवी घटना के रूप में वर्णन करे तो न तो कोई बुद्धिमान मनुष्य उसे सुनने या स्वीकार करने को तैयार होगा और न उसका असली मूल्य जो अभी आँका जाता है, कायम रह सकता है । यह युगबल अर्थात् वैज्ञानिक युग का प्रभाव है । यह बल प्राचोन या मध्ययुग में नहीं था अतएव . उस समय इसी प्रकार की स्वाभाविक घटना को जबतक देवी या चमत्कारिक लिबास न पहनाया जाता तब तक लोगों में उसका प्रचार न हो पाता था । यह दोनों युगों का अन्तर है, इसे समझकर ही हमें प्राचीन और मध्ययुग की बातों का तथा जीवनवृत्तान्तों का विचार करना चाहिए । अब अन्त में यह प्रश्न उपस्थित होता है कि शास्त्र में उल्लिखित चमत्कारपूर्ण और दैवी घटनाओं को आजकल किस अर्थ में समझना और पढ़ना चाहिए ? इसका उत्तर स्पष्ट है । वह यह कि किसी भी महान् पुरुष के जीवन में 'शुद्धबुद्धियुक्त पुरुषार्थ' ही सच्चा और मानने योग्य तत्त्व होता है । इस तत्त्व को जनता के समक्ष उपस्थित करने के लिए शास्त्रकार विविध कल्पनाओं की भी योजना करते हैं । धर्मवीर महावीर हों या कर्मवीर कृष्ण हों, किन्तु इन दोनों के जीवन में से सीखने योग्य तत्त्व तो एक ही होता है। धर्मवीर महावीर के जीवन में यह पुरुषार्थ अन्तर्मुख होकर आत्मशोधन का मार्ग ग्रहण करता है और आत्मशोधन के समय आने वाले आन्तरिक या बाह्य प्राकृतिक समस्त उपसर्गों को यह महान् पुरुष ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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