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________________ [चार तीर्थंकर : ७७ (७) कृष्ण की रासलीला (७) कृष्ण रास और गोपी एवं गोपीक्रीड़ा उत्तरोत्तर अधिक क्रीड़ा करते हैं पर वे गोपियों के शृगारमय बनती जाती है और हावभाव में लुब्ध न होकर एकवह भी यहाँ तक कि अन्त में दम अलिप्त ब्रह्मचारी रहते पद्मपुराण में भोग का रूप धारण हैं। करके वल्लभ सम्प्रदाय की -हरिवंश, सर्ग ३५, श्लो० भावना के अनुसार महादेव के ६५-६६, पृ० ३६६ मुख से उसे समर्थन मिलता है। -पद्मपुराण अ० २४५, श्लो. १७५-१७६, पृ० ८८६-८६० (८) इन्द्र ने व्रजवासियों पर (८) जिनसेन के कथनानुजो उपद्रव किये उन्हें शांत करने सार इन्द्र द्वारा किये हुए उपद्रवों के लिये कृष्ण गोवर्धन पर्वत को को शांत करने के लिए नहीं, सात दिन तक हाथ से उठाये वरन् कंस द्वारा भेजी हुई रखते हैं। देवी के उपद्रवों को शांत करने के लिए कृष्ण ने गोवर्धनपर्वत को उठाया। -हरिवंश, सर्ग ३५, श्लो. ४८-५०, पृ० ३६७ पुराणों और जैन-ग्रन्थों में वर्णित कृष्ण के जीवन की कथा के ऊपर जो थोड़े से उदाहरण दिये गये हैं उन्हें देखते हुये इस संबंध में शायद ही यह संदेह रहे कि कृष्ण वास्तव में वैदिक या पौराणिक पात्र हैं और जैनग्रन्थों में उन्हें पीछे से स्थान मिला है। पौराणिक कृष्णजीवन की कथा में मार-काट, असुर-संहार और गारी लीलाएँ हैं । जैन-ग्रन्थकारों ने अपनी अहिंसा और त्याग की भावना के अनुसार उन लीलाओं को बदलकर अपने साहित्य में एक भिन्न ही रूप दिया है। यही कारण है कि पुराणों की भाँति जैन-ग्रंथों में न तो कंस द्वारा बालकों की हत्या दिखाई देती है और न कंस के भेजे हए उपद्रवियों का कृष्ण द्वारा प्राणनाश ही दिखाई पड़ता है । जैसे पृथ्वीराज ने शाहबुद्दीन को छोड़ दिया उसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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