________________
७२ : धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण]
(२) कृष्ण के गर्भावतरण से लेकर जन्म, बाललीला और आगे के जीवन-वृत्तांतों का निरूपण करने वाले प्रधान वैदिक पुराण हरिवंश, विष्णु, पद्म, ब्रह्मवैवर्त और भागवत हैं। भागवत लगभग आठवीं-नौवीं शताब्दी का माना जाता है। शेष पुराण किसी एक ही हाथ से और एक ही समय में नहीं लिखे गये हैं, फिर भी हरिवंश, विष्णु और पद्म ये पुराण पांचवीं शताब्दी से पहले भी किसी न किसी रूप में अवश्य विद्यमान थे। इसके अतिरिक्त इन पुराणों के पहले भी मूल पुराणों के अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं। हरिवंश पुराण से लेकर भागवतपुराण तक के उपर्युक्त पुराणों में आनेवाली कृष्ण के जीवन की घटनाओं को देखने से भी मालूम होता है कि इन घटनाओं में केवल कवित्व की ही दृष्टि से नहीं किन्तु वस्तु की दृष्टि से भी बहुत कुछ विकास हुआ है। हरिवंशपुराण और भागवतपुराण की कृष्ण के जीवन की कथा सामने रखकर पढ़ने से यह विकास स्पष्ट प्रतीत होने लगता है।
दूसरी ओर जैन-साहित्य में कृष्णजीवन की कथा का निरूपण करनेवाले मुख्य ग्रंथ दोनों-दिगम्बर और श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में हैं । श्वेताम्बरीय अंग-ग्रंथों में से छठे ज्ञाता और आठवें अंतगड में भी कृष्ण का प्रसंग आता है। वसुदेवहिन्डी ( लगभग सातवीं शताब्दी, देखो पृ० ३६८-३६६ ) जैसे प्राकृत ग्रंथों में कृष्णके जीवन की विस्तृत कथा मिलती है। दिगम्बरीय साहित्य में कृष्ण-जीवन का विस्तृत और मनोरंजक वृत्तान्त बताने वाला ग्रंथ जिनसेनकृत हरिवंशपुराण (विक्रमीय हवीं शताब्दी) है और गुणभद्रकृत उत्तर पुराण (विक्रमीय हवीं शताब्दी) में भी कृष्ण की जीवन-कथा है । दिगम्बरीय हरिवंशपुराण और उत्तरपुराण ये दोनों विक्रम की नौवीं शताब्दी के ग्रंथ हैं।
कृष्ण के जीवन के कुछ प्रसंगों को लेकर देखिये कि वे ब्राह्मणपुराणों में किस प्रकार वर्णित किये गये हैं और जैन-ग्रंथों में उनका उल्लेख किस प्रकार का है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org