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________________ [चार तीर्थंकर : १२ कराने बाबत उनकी सम्मति माँगी जाय तो वे निर्विवाद रूप से यही मत दर्शाते हैं कि लग्न और गार्हस्थ्य बंधन त्याज्य है । खेती-बारी या दूसरे अति आवश्यक धन्धे करने के विषय में उनका मत पूछिये तो वे राय देंगे कि भाई ? यह तो कर्म बन्धन है, नरक का द्वार है; खेती में तो असंख्य जीव मरते हैं । अंगारकर्म, वनकर्म वगैरह धंधे तो जैनों के लिए कर्मादान रूप माने जाने के कारण त्याज्य ही हैं । लड़के-लड़कियों को घर-धन्धे की तमाम शिक्षा देने का माता पिता का अनिवार्य कर्तव्य है या नहीं ? इस प्रश्न के जवाब में या तो वे आचार्य चुप्पी साध लेते हैं या उनका निवृत्तिधर्म उनके पास भाषा समिति के द्वारा इतना ही कहलाता है कि इस विषय में ज्यादा कहना मुनि का धर्म नहीं, तुम खुद ही यथायोग्य समझ लो । जिस प्रकार आत्मकल्याण हो, वैसा करो, इत्यादि । ऋषभ के चरित्र - लेखक आचार्यों के इसी भाँति के संस्कार थे । जिन प्रश्नों का जवाब स्वतंत्र रूप से वे नकार में ही देते हैं वे प्रश्न ऋषभ का जीवन लिखते समय उनके सामने उपस्थित हुए । ऋषभ इतने अधिक मान्य और पूज्य थे कि उनके जीवन की एक-एक घटना का समर्थन किये बिना उनके लिये कोई चारा ही न था और दूसरी तरफ निवृत्तिधर्म विषयक उनके संस्कारों ने उस तरह समर्थन करने से रोका। आखिर में उन्होंने इन घटनाओं का समर्थन तो किया, परन्तु वह समर्थन कहने मात्र का और अस्पष्ट था । हेमचन्द्र विवाह के विषय में लिखते हुए कहते हैं कि ऋषभदेव ने १ - मन्ये स्वामी वीतरागो गर्भवासात् प्रभृत्यपि । चतुर्थपुरुषार्थाय सज्जोऽन्यानपेक्षया ॥ ७६२ ॥ तथापि नाथ ! लोकानां व्यवहारपथोऽपि हि । त्वयैव मोक्षवव सम्यक् प्रकटयिष्यते ॥ ७६३ ॥ तल्लोकव्यवहाराय पाणिग्रहमहोत्सवम् । विधीयमानं भवतेच्छामि नाथ ! प्रसीद मे ॥ ७६४ ।। दर्शनीया स्थितिर्लोके भोक्तव्यं भोग्यकर्म च । अस्ति मे चिन्तयित्वैवमन्वन्यत तद्वचः ।। ८२५ ।। ततः प्रभृति सोद्वाहस्थिति: स्वामिप्रवर्तिता । प्रावर्तत परार्थाय महतां हि प्रवृत्तयः ॥ ८८१ ॥ - त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित पर्व १. सर्ग. २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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