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________________ १०४ : भगवान् महावीर का जीवन गति तो स्पष्ट है फिर भी इस घटना को पढ़ने वाले के मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि यदि आगमों में गर्भापहरण जैसी घटना ने महाव र की जीवनी में स्थान पाया है तो जन्म-काल में अंगुष्ठ मात्र से किये गये सुमेरु के कम्पन जैसी अद्भुत घटना को आगमों में ही स्थान क्यों नहीं दिया है ? इतना ही नहीं बल्कि आगमकाल से अनेक शताब्दियों के बाद रची गई नियुक्ति व चणि जिसमें कि भगवान् का जीवन निर्दिष्ट है उसमें भी उस घटना का कोई जिक्र नहीं है । महावीर के पश्चात् कम से कम हजार-बारहसौ वर्ष तक में रचे गये और संग्रह किये गये वाङ्मय में जिस घटना का कोई जिक्र नहीं है वह यकायक सब से पहिले 'पउमचरियं' में कैसे आ गई ? यह प्रश्न कम कुतूहलवर्धक नहीं है। हम जब इसके खुलासे के लिए आसपास के साहित्य को देखते हैं तो हमें किसी हद तक सच्चा जवाब भी मिल जाता है । वाल्मीकि रामायण में दो प्रसंग हैं -पहिला प्रसंग युद्धकाण्ड में और दूसरा उत्तरकाण्ड में आता है। युद्ध काण्ड में हनुमान् के द्वारा समूचा कैलास-शिखर उठाकर रणांगण में - जहाँ कि घायल लक्ष्मण पड़ा था-ले जाकर रखने का वर्णन है जब कि उत्तर-काण्ड में रावण द्वारा समूचे हिमालय को हाथ में तौलने का तथा महादेव द्वारा अंगुष्ठमात्र से रावण के हाथ में तौले हुए हिमालय को दबाने का वर्णन है। इस तरह हरिवंश आदि प्राचीन पुराणों में कृष्ण द्वारा सात रोज तक गोवर्धनपर्वत को उठाये रखने का भी वर्णन है। पौराणिक व्यास राम और कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों की कथा सुनने वालों का मनोरंजन उक्त प्रकार की अद्भुत कल्पनाओं के द्वारा कर रहे हों तब उस वातावरण के बीच रहने वाले और महावीर का जीवन सुनाने वाले जैन-ग्रन्थकार स्थल भूमिका वाले अपने साधारण भक्तों का मनोरंजन पौराणिक व्यास को तरह ही कल्पित चमत्कारों से करें तो यह मनुष्य-स्वभाव के अनुकूल हो है। मैं समझता हूं कि अपने-अपने पूज्य पुरुषों की महत्तासूचक घटनाओं के वर्णन की होड़ा-होड़ी में (स्पर्धा में) पड़कर सभी महापुरुषों की जीवनी लिखनेवालों ने सत्यासत्य का विवेक कमोबेश रूप से खो दिया है। इसी दोष के कारण सुमेरुकम्पन का प्रसंग महा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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