SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ आगम-युग का जन-दर्शन लोक की नित्यानित्यता और सान्तानन्तता : उपयुक्त बौद्ध अव्याकृत प्रश्नों में प्रथम चार लोक की नित्यानित्यता और सान्तता-अनन्तता के विषय में हैं। उन प्रश्नों के विषय में भगवान् महावीर का जो स्पष्टीकरण है, वह भगवती में स्कन्दक४५ परिव्राजक के अधिकार में उपलब्ध है। उस अधिकार से और अन्य अधिकारों से यह सुविदित है कि भगवान् ने अपने अनुयायियों को लोक के संबंध में होने वाले उन प्रश्नों के विषय में अपना स्पष्ट मन्तव्य बता दिया था, जो अपूर्व था। अतएव उनके अनुयायी अन्य तीर्थंकरों से इसी विषय में प्रश्न करके उन्हें चुप किया करते थे। इस विषय में भगवान् महावीर के शब्द ये हैं _ "एवं खलु मए खंदया ! चउविहे लोए पन्नत्ते, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावनो। दव्यओ गं एगे लोए सते १ ।। खेत्तओ णं लोए असंखेज्जायो जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं पन्नत्ता, अत्थि पुण सते २ । ___ कालओ णं लोए कयावि न आसी, न कयावि न भवति, न कयाविन भविस्सति, भविसु य भवति य भविस्सइ य, धुवे णितिए सासते अक्खए अव्वए अवढ़िए णिच्चे, गस्थि पुण से अन्ते ३ । भावओ णं लोए अणंता वण्णपज्जवा गंधपज्जवा रमपज्जवा फासपज्जया अणंता संठाणपज्जवा अणंता गरुयल हुयपज्जवा अणंता अगरुयलहुयपज्जवा, नत्थि पुण से अन्ते ४ । __ से तं खंदगा ! दवओ लोए सते, खेत्तो लोए सते, कालतो लोए अणंते भावओ लोए अणंते ।" भग० २.१.६० . इसका सार यह है कि लोक द्रव्य की अपेक्षा से सान्त है, क्योंकि यह संख्या में एक है । किन्तु भाव अर्थात् पर्यायों की अपेक्षा से लोक अनन्त है, क्योंकि लोकद्रव्य के पर्याय अनन्त हैं । काल की दृष्टि से लोक ४५ शतक २ उद्देशक १. ४६ शतक : उद्देशक ६ । सूत्रकृतांग१.१.४६-“अन्तवं निइए लोए इइ धीरो ति पासई।" For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy