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________________ प्रमेय-खण्ड ही पार्श्वनाथ ने ग्रहण किया था और स्वयं अरिष्टनेमि ने प्रागैतिहासिक काल में होने वाले नमिनाथ से । इस प्रकार वह अनुश्रुति हमें ऋषभदेव जो कि भरत चक्रवर्ती के पिता थे, तक पहुँचा देती है । उसके अनुसार तो वर्तमान वेद से लेकर उपनिषद् पर्यन्त संपूर्ण साहित्य का मूल स्रोत ऋषभदेव प्रणीत जैन तत्त्व-विचार में ही है । Jain Education International ५१ इस जैन अनुश्रुति के प्रामाण्य को ऐतिहासिक दृष्टि से सिद्ध करना संभव नहीं है, तो भी अनुश्रुतिप्रतिपादित जैन विचार की प्राचीनता में संदेह को कोई स्थान नहीं है । जैन तत्त्वविचार की स्वतंत्रता इसी से सिद्ध है कि जब उपनिषदों में अन्य दर्शन - शास्त्र के बीज मिलते हैं, तब जैन तत्त्वविचार के बीज नहीं मिलते । इतना ही नहीं किन्तु भगवान् महावीर - प्रतिपादित आगमों में जो कर्म - विचार की व्यवस्था है, मार्गणा और गुणस्थान सम्बन्धी जो विचार है, जीवों की गति और आगति का जो विचार है, लोक की व्यवस्था और रचना का जो विचार है, जड़ परमाणु पुद्गलों की वर्गणा और पुद्गल स्कन्ध का जो व्यवस्थित विचार है, षड्द्रव्य और नवतत्त्व का जो व्यवस्थित निरूपण है, उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जैन तत्त्वविचार वारा भगवान महावीर से पूर्व की कई पीढ़ियों के परिश्रम का फल है और इस धारा का उपनिषद् - प्रतिपादित अनेक मतों से पार्थक्य और स्वातंत्र्य स्वयंसिद्ध है । भगवान् महावीर की देन : अनेकान्तवाद प्राचीन तत्त्व व्यवस्था में भगवान् महावीर ने क्या नया अर्पण किया, इसे जानने के लिए आगमों से बढ़कर हमारे पास कोई साधन नहीं है । जीव और अजीव के भेदोपभेदों के विषय में, मोक्ष-लक्षी आध्यात्मिक उत्क्रान्तिक्रम के सोपानरूप गुणस्थान के विषय में चार प्रकार के ध्यान के विषय में या कर्म - शास्त्र के सूक्ष्म भेदोपभेदों के विषय में या लोक रचना के विषय में या परमाणुओं की विविध वर्गणाओं के विषय में भगवान् महावीर ने कोई नया मार्ग दिखाया हो, यह तो आगमों को देखने से प्रतीत नहीं होता । किन्तु तत्कालीन दार्शनिक क्षेत्र में तव के स्वरूप के विषय में जो नये-नये प्रश्न उठते रहते थे, उनका जो स्पष्टी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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