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________________ प्राचार्य मल्लवादो का नयचक्र ३१६ का साधन मात्र है । अतएव शब्द नहीं, किन्तु ज्ञान प्रधान है। यहाँ भर्तृहरि और उनके गुरु वसुरात का भी खण्डन है। ज्ञानवाद के विरुद्ध स्थापना निक्षेप का, निविषयक ज्ञान होता नहीं-इस युक्ति से उत्थान है । शाब्द बोध जो होगा उसका विषय क्या माना जाय ? जाति सामान्य या अपोह ? प्रस्तुत में स्थापना निक्षेप के द्वारा अपोहवाद का खण्डन करके जाति की स्थापना की गई है। (६) जातिवाद के विरुद्ध विशेषवाद और विशेषवाद के विरुद्ध जातिवाद का उत्थान है; अतएव वस्तु सामान्यकान्त या विशेषकान्तरूप है ऐसा नहीं कहा जा सकता। वह अवक्तव्य है । इसके समर्थन में निम्न आगम वाक्य उद्धृत किया है-“इमा णं रयणप्पमा पुढ़वी आता नो आता ? गोयमा ! अप्पणो आदिट्ठ आता, परस्स आदि8 नो आता तदुभयस्स आदिट्ठ अवत्तव्वं ॥" (१०) इस अवक्तव्यवाद के विपक्ष में समभिरूढ नय का आश्रय लेकर बौद्ध दृष्टि से कहा गया कि द्रव्योत्पत्ति गुणरूप है अन्य कुछ नहीं । मिलिन्द प्रश्न की परिभाषा में कहा जाय तो स्वतंत्र रथ कुछ नहीं रथांगों का ही अस्तित्व है । रथांग ही रथ है अर्थात् द्रव्य जैसी कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं, गुण ही गुण हैं । इसी वस्तु का समर्थन सेना और वन के दृष्टान्तों द्वारा भी किया गया है। इस समभिरूढ की चर्चा में कहा गया है कि एक-एक नय के शतशत भेद होते हैं, तदनुसार समभिरूढ के भी सौ भेद हुए। उनमें से यह गुण समभिरूढ एक है । गुणसमभिरूढ के विधि आदि बारह भेद हैं । उनमें से यह नियमविधि नामक गुणसमभिरूढ है। इस नय का निर्गम आगम के-"कई विहे णं भन्ते ! भावपरमाणु पन्नते ? गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते-वण्णवन्ते, गंधवंते, फासवंते रसवंते" इस वाक्य से है। (११) समभिरूढ का मन्तव्य गुणोत्पत्ति से था। तब उसके विरुद्ध एवंभूत का उत्थान हुआ । उसका कहना है कि उत्पत्ति ही विनाश है । क्योंकि वस्तुमात्र क्षणिक हैं । यहाँ बौद्धसंमत निर्हेतुक विनाशवाद के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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