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________________ प्राचार्य मल्लवादी का नयचक्र ३१५ कामः' इस वैदिक विधिवाक्य को क्रियोपदेशकरूप से मीमांसकों के द्वारा माना जाता है । किन्तु अज्ञानवाद के आश्रय करने पर किसी भी प्रकार से यह वाक्य विधिवाक्य रूप से सिद्ध नहीं हो सकता। इसकी विस्तृत चर्चा की गई है और उस प्रसंग में सत्कार्यवाद के एकान्त में भी दोष दिए गए हैं । इस प्रकार पूर्व अर में प्रतिपादित अज्ञानवाद और क्रियोपदेश का निराकरण करके पुरुषाद्वैत की वस्तुतत्त्वरूप से और सब कार्यों के कारण रूप से स्थापना द्वितीय अर में की गई है। इस पुरुष को ही आत्मा, कारण, कार्य और सर्वज्ञ सिद्ध किया गया है। सांख्यों के द्वारा प्रकृति को जो सर्वात्मक कहा गया था, उसके स्थान में पुरुष को ही सर्वात्मक सिद्ध किया गया है। इस प्रकार एकान्त पुरुषकारणवाद की जो स्थापना की गई है उसका आधार 'पुरुष एवेदं सर्वं यद् भूतं यच्च भव्यं' इत्यादि शुक्ल यजुर्वेद के मन्त्र (३१.२) को बताया गया है । और अन्त में कह दिया गया है कि वह पुरुष ही तत्त्व है, काल है, प्रकृति है, स्वभाव है, नियति है । इतना ही नहीं, किन्तु देवता और अर्हन् भी वही है। आचार्य का अज्ञानवाद के बाद पुरुषवाद रखने का तात्पर्य यह जान पड़ता है कि अज्ञानविरोधी ज्ञान है और ज्ञान ही चेतन आत्मा है, अतएव वही पुरुष है. । अतएव यहाँ अज्ञानवाद के बाद पुरुषवाद रखा गया है-ऐसी संभावना की जा सकती है। इस प्रकार द्वितीय अर में विधिविधिनय का प्रथम विकल्प पुरुषवाद जब स्थापित हुआ तब विधिविधिनय का दूसरा विकल्प पुरुषवाद के विरुद्ध खड़ा हुआ और वह है नियतिवाद । नियतिवाद के उत्थान के लिए आवश्यक है कि पुरुषवाद के एकान्त में दोष दिखाया जाय । दोष यह है कि पुरुष ज्ञ और सर्वतन्त्र स्वतन्त्र हो तो वह अपना अनिष्ट तो कभी कर ही नहीं सकता है, किन्तु देखा जाता है कि मनुष्य चाहता है कुछ, और होता है कुछ और । अत एव सर्व कार्यों का कारण पुरुष नहीं, किन्तु नियति है, ऐसा मानना चाहिए। इसी प्रकार से उत्तरोत्तर क्रमशः खण्डन करके कालवाद, स्वभा हामी यहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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