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________________ ३०६ भागम-युग का जन-वर्शन करता है कि दृष्टिवाद के सूत्रांश के साथ भी इसका संबन्ध है। संभव है इस सूत्रांश का विषय ज्ञानप्रवाद में अन्य प्रकार से समाविष्ट कर लिया गया हो । इस विषय में निश्चित कुछ भी कहना कठिन है । फिर भी दृष्टिवाद की विषय-सूची देख कर इतना ही निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि नयचक्र का जो दृष्टिवाद के साथ सम्बन्ध जोड़ा गया है, वह निराधार नहीं। नयचक्र का उच्छेद क्यों ? __ नयचक्र पठन-पाठन में नहीं रहा यह तो पूर्वोक्त कथा से सूचित होता है। ऐसा क्यों हुआ? यह प्रश्न विचारणीय है। नयचक्र में ऐसी कौनसी बात होगी, जिसके कारण उसके पढ़ने पर श्रुतदेवता कुपित होती थी ? यह विचारणीय है। ___ इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें दृष्टिवाद के उच्छेद के कारणों की खोज करनी होगी। जिसका यह स्थान नहीं । यहाँ तो इतना ही कहना पर्याप्त है कि दृष्टिवाद में अनेक ऐसे विषय थे जो कुछ व्यक्ति के लिए हितकर होने के बजाय अहितकर हो सकते थे। उदाहरण के लिए विद्याए योग्य व्यक्ति के हाथ में रहने से उनका दुरुपयोग होना संभव नहीं, किन्तु वे ही यदि अस्थिर व्यक्ति के हाथ में हों तो दुरुपयोग संभव है । यह स्थूलभद्र की कथा से सूचित होता ही है । उन्होंने अपनी विद्यासिद्धि का अनावश्यक प्रदर्शन कर दिया और वे अपने संपूर्ण दृष्टिवाद के पाठन के अधिकार से वंचित कर दिए गए। जैनदर्शन को सर्वनयमय कहा गया है। यह मान्यता निराधार नहीं । दृष्टिवाद के नयविवरण में संभव है कि आजीवक आदि मतों की सामग्री का वर्णन हो और उन मतों का नयदृष्टि से समर्थन भी हो। उन मतों के ऐसे मन्तव्य जिनको जैनदर्शन में समाविष्ट करना हो, उनकी युक्तिसिद्धता भी दर्शित की गई हो। यह सब कुशाग्रबुद्धि पुरुष के लिए ज्ञान-सामग्री का कारण हो सकता है और जड़बुद्धि के लिए जैनदर्शन में अनास्था का भी कारण हो सकता है । यदि नयचक्र उन मतों का संग्राहक हो तो जो आपत्ति दृष्टिवाद के अध्ययन में है वही नयचक्र के भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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