SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राचार्य मल्लवादी का नयचक्र २६७ ये नये बौद्ध अपने को विद्वान तो समझते हैं, किन्तु हैं नहीं,' । समग्र रूप से "विद्वन्मन्याद्यतनबौद्ध" " शब्द से यह अर्थ भी निकल सकता है कि मल्लवादी और दिग्नाग का समकालीनत्व तो है ही, साथ ही मल्लवादी उन नये बौद्धों को सिंहगणि के अनुसार 'छोकरे' समझते हैं । अर्थात् समकालीन होते हुए भी मल्लवादी वृद्ध हैं और दिग्नाग युवा इस चर्चा के प्रकाश में परंपराप्राप्त गाथा का विचार करना जरूरी है । विजयसिंह सूरिप्रबंध में एक गाथा में लिखा है कि वीर सं० ८८४ में मल्लवादी ने बौद्धों को हराया । अर्थात् विक्रम ४१४ में यह घटना घटी । इससे इतना तो अनुमान हो सकता है कि विक्रम ४१४ में मल्लवादी विद्यमान थे । आचार्य दिग्नाग के समकालीन मल्लवादी थे यह तो हम पहले ही कह चुके हैं । अत एव दिग्नाग के समय विक्रम ४०२-४८२ के साथ जैन परंपरा के द्वारा संमत मल्लवादी के समय का कोई विरोध नहीं है और इस दृष्टि से 'मल्लवादी वृद्ध और दिग्नाग युवा इस कल्पना में भी विरोध की संभावना नहीं । आचार्य सिद्धसेन की उत्तरावधि विक्रम पाँचमी शताब्दी मानी जाती है । मल्लवादी ने आचार्य सिद्धसेन का उल्लेख किया है । अत एव इन दोनों प्राचार्यों को भी समकालीन माना जाए, तब भी विसंगति नहीं । इस प्रकार आचार्य दिग्नाग, सिद्धसेन और मल्लवादी ये तीनों आचार्य समकालीन माने जाएँ तो उनके अद्यावधि स्थापित समय में कोई विरोध नहीं आता । वस्तुतः नयचक्र के उल्लेखों के प्रकाश में इन आचार्यों के समय की पुनर्विचारणा अपेक्षित है; किन्तु अभी इतने से सन्तोष किया जाता है । नयचक्र का महत्त्व : जैन साहित्य का प्रारम्भ वस्तुतः कब से हुआ इसका सप्रमाण उत्तर देना कठिन है । फिर भी इतना तो अब निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि भगवान् महावीर को भी भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेश की ३. नयच क्रटीका पृ० १६ - " विद्वन्मन्याद्यतन बौद्धपरिक्लृप्तम्” ४. प्रभावक चरित्र - मुनिश्री कल्याणविजयजी का अनुवाद पृ० ३७, ७२ ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy