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________________ २६० अागम युग का जैन दर्शन का समावेश कर दिया। परोक्ष के इन पाँच भेदों को व्यवस्था अकलंक को ही सूझ है । प्रायः सभी जैन दार्शनिकों ने अकलंककृत इस व्यवस्था को माना है। प्रमाण व्यवस्था के इस युग में जैनाचार्यों ने पूर्व युग की सम्पत्ति अनेकान्तवाद की रक्षा और उसका विस्तार किया। प्राचार्य हरिभद्र और अकलंक ने भी इस कार्य को वेग दिया। प्राचार्य हरिभद्र ने अनेकान्त के ऊपर होने वाले प्राक्षेपों का उत्तर अनेकान्त-जय-पताका लिख कर दिया। प्राचार्य अकलंक ने प्राप्त-मीमांसा के ऊपर अष्टशती नामक टीका लिखकर बौद्ध और अन्य दार्शनिकों के प्रक्षेपों का तर्क-संगत उत्तर दिया और उसके बाद विद्यानन्द ने अष्टसहस्री नामक महती टीका लिखकर अनेकान्त को अजेय सिद्ध कर दिया। हरिभद्र ने जैन दर्शन के पक्ष को प्रबल बनाने के लिए और भी अनेक ग्रंथ लिखे, जिनमें शास्त्र-वार्ता-समुच्चय मुख्य है । अकलंक ने प्रमाण-व्यवस्था के लिए लघीयस्त्रय, न्यायविनिश्चय, एवं प्रमाण-संग्रह लिखा। और सिद्धिविनिश्चय नामक ग्रन्थ लिखकर उन्होंने जैन दार्शनिक मन्तव्यों को विद्वानों के सामने अकाट्य प्रमाणपूर्वक सिद्ध कर दिया। आचार्य विद्यानन्द ने अपने समय तक विकसित दार्शनिक वादों को तत्त्वार्थश्लोकवानिक में स्थान दिया, और उनका समन्वय करके अनेकान्तवाद की चर्चा को पल्लवित किया, तथा प्रमाण-शास्त्र-सम्बद्ध विषयों की चर्चा भी उसमें की । प्रमाण-परीक्षा नामक अपनी स्वतन्त्र कृति में दार्शनिकों के प्रमाणों की परीक्षा करके अकलंक-निर्दिष्ट प्रमाणों का समर्थन किया। उन्होंने आप्त-परीक्षा में आप्तों की परीक्षा करके तीर्थंकर को ही आप्त सिद्ध किया और अन्य बुद्ध आदि को अनाप्त सिद्ध किया। प्राचार्य माणिक्यनन्दी ने अकलंक के ग्रन्थों का सार लेकर परीक्षा-मुख नामक जैन न्याय का एक सूत्रात्मक ग्रंथ लिखा । ग्यारहवीं शताब्दी में अभयदेव और प्रभाचन्द्र ये दोनों महान् ताकिक टीका कार हुए । एक ने सिद्धसेन के सन्मति की टीका के बहाने समूचे दार्शनिक वादों का संग्रह किया, और दूसरे ने परीक्षा-मुख की टोका प्रमेयकमल-मार्तण्ड और लघीयस्त्रय की टीका न्यायकुमुदचन्द्र में जैन प्रमाण-शास्त्र-सम्बद्ध समस्त विषयों की व्यवस्थित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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