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________________ दार्शनिक साहित्य का विकास-क्रम २८३ का निराकरण करके शुद्ध क्रियावाद की स्थापना की गई है । स्थानाङ्ग तथा समवायाङ्ग में ज्ञान, प्रमाण, नय, निक्षेप इन विषयों का संक्षेप में संग्रह यत्र-तत्र हुआ है। किन्तु नन्दीसूत्र में तो जैन दृष्टि से ज्ञान का विस्तृत निरूपण हुआ है । अनुयोगद्वार-सूत्र में शब्दार्थ करने की प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन है, तथा प्रमाण, निक्षेप और नय का निरूपण भी प्रसङ्ग से उसमें हआ है । प्रज्ञापना में आत्मा के भेद, उन के ज्ञान, ज्ञान के साधन, ज्ञान के विषय और उन की नाना अवस्थाओं का विस्तृत निरूपण है। जीवाभिगम में भी जीव के विषय में अनेक ज्ञातव्य बातों का संग्रह है। राजप्रश्नीय में प्रदेशी नामक नास्तिक राजा के प्रश्न करने पर पार्श्वसन्तानीय श्रमण केशी ने जीव का अस्तित्व सिद्ध किया है । भगवती में ज्ञान-विज्ञान की अनेक बातों का संग्रह हुआ है और अनेक अन्य तीथिक मतों का निरास भी किया गया है। __आगम-युग में इन दार्शनिक विषयों का निरूपण राजप्रश्नीय को छोड़ दें, तो युक्ति-प्रयुक्ति-पूर्वक नहीं किया गया है, यह स्पष्ट है। प्रत्येक विषय का निरूपण, जैसे कोई द्रष्टा देखी हुई बात बता रहा हो, इस ढङ्ग से हुआ है । किसी व्यक्ति ने शङ्का की हो और उसकी शङ्का का समाधान युक्तियों से हुआ हो, यह प्रायः नहीं देखा जाता । वस्तु का निरूपण उसके लक्षण द्वारा नहीं, किन्तु भेद-प्रभेद के प्रदर्शन-पूर्वक किया गया है। आज्ञा-प्रधान या श्रद्धा-प्रधान उपदेश-शैली यह आगम-युग की विशेषता है। उक्त आगमों को दिगम्बर आम्नाय नहीं मानता । बारहवें अङ्ग के अंशभूत पूर्व के आधार से आचार्यों द्वारा ग्रथित षट्खण्डागम, कषाययपाहुड और महाबन्ध-ये दिगम्बरों के आगम हैं। इनका विषय जीव और कर्म तथा कर्म के कारण जीव की जो नाना अवस्थाएं होती हैं, यही मुख्य रूप से हैं ! उक्त आगमों में से कुछ के ऊपर भद्रबाहु ने नियुक्तियाँ विक्रम पाँचवीं शताब्दी में की हैं । नियुक्ति के ऊपर विक्रम सातवीं शताब्दी में भाष्य बने । ये दोनों पद्य में प्राकृत भाषा में प्रथित हैं । इन नियुक्तियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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