SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रागमोत्तर जैन-दर्शन २५७ आचार्य कुन्दकुन्द ने जैन परिभाषा के अनुसार संसारवर्धक दोषों का वर्णन किया तो है१४२, किन्तु अधिकतर दोषवर्णन सर्वसुगमता की दष्टि से किया है। यही कारण है, कि उनके ग्रन्थों में राग, द्वेष और मोह इन तीन मौलिक दोषों का बार-बार जिक्र आता है और मुक्ति के लिए इन्हीं दोषों को दूर करने के लिए भार दिया गया है। भेद-ज्ञान : सभी आस्तिक दर्शनों के अनुसार विशेष कर अनात्मा से आत्मा का विवेक करना या भेदज्ञान करना, यही सम्यग्ज्ञान है, अमोह है । बौद्धों ने सत्कायदृष्टि का निवारण करके मूढदृष्टि के त्याग का जो उपदेश दिया है, उसमें भी रूप, विज्ञान आदि में आत्म-बुद्धि के त्याग की ओर ही लक्ष्य दिया गया है। आचार्य कुन्दकुन्द ने भी अपने ग्रन्थों में भेदज्ञान कराने का प्रयत्न किया है। वे भी कहते हैं, कि आत्मा मार्गणास्थान, गुणस्थान, जीवस्थान, नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, और देव, नहीं है। वह बाल, वृद्ध, और तरुण नहीं है । वह राग द्वेष, मोह नहीं है; क्रोध, मान, माया और लोभ नहीं है। वह कर्म, नोकर्म नहीं है । उसमें वर्ण आदि नहीं है इत्यादि भेदाभ्यास करना चाहिए१४४ । शुद्धात्मा का यह भेदाभ्यास जैनागमों में भी विद्यमान है ही। उसे ही पल्लवित करके आचार्य ने शुद्धात्मस्वरूप का वर्णन किया है। तत्त्वाभ्यास होने पर पुरुष को होने वाले विशुद्ध ज्ञान का वर्णन सांख्यों ने किया है, कि "एवं तत्त्वाभ्यासान्नास्मि न मे नाहमित्यपरिशेषम् । अविपर्ययाद्विशुद्ध केपलमुत्पद्यते ज्ञानम् ॥" -सांस्यका० ६४ १४२ समयसार ६४,६६,११६,१८५,१८८ । पंचा० ४७,१४७ इत्यादि। नियमसार ८१ । १४3 प्रवचन १.८४,८८ । पंचा० १३५,१३६,१४६,१५३, १५६ । समयसार १६५,१८६,१६१,२०१,३०६,३०७, ३०६,३१० । नियमसार ५७,८० इत्यादि । १४४ नियमसार ७०-८३,१०६ । समयसार ६,२२,२५-६० ४२०-४३३ । प्रवचन० २.६६ से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy