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________________ श्रागमोत्तर जैन- दर्शन २३१ आयार्य कुन्दकुन्द की जैन दर्शन को देन : वाचक उमास्वाति ने जैन आगमिक तत्त्वों का निरूपण संस्कृत भाषा में सर्वप्रथम किया है, तो आचार्य कुन्दकुन्द ने आगमिक पदार्थों की दार्शनिक दृष्टि से तार्किक चर्चा प्राकृत भाषा में सर्वप्रथम की है, ऐसा उपलब्ध साहित्य - सामग्री के आधार पर कहा जा सकता है । आचार्य कुन्दकुन्द ने जैन तत्त्वों का निरूपण वाचक उमास्वाति की तरह मुख्यतः आगम के आधार पर नहीं, किन्तु तत्कालीन दार्शनिक विचारधाराओं के प्रकाश में आगमिक तत्वों को स्पष्ट किया है, इतना ही नहीं, किन्तु अन्य दर्शनों के मन्तव्यों का यत्र-तत्र निरास करके जैन मन्तव्यों की निर्दोषता और उपादेयता भी सिद्ध की है । वाचक उमास्वाति के तत्त्वार्थ की रचना का प्रयोजन मुख्यतः संस्कृत भाषा में सूत्र - शैली के ग्रन्थ की आवश्यकता की पूर्ति करना था । तब आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की रचना का प्रयोजन कुछ दूसरा ही था । उनके सामने तो एक महान् ध्येय था । दिगम्बर संप्रदाय की उपलब्ध जैन आगमों के प्रति अरुचि बढ़ती जा रही थी । किन्तु जब तक ऐसा ही दूसरा साधन आध्यात्मिक भूख को मिटाने वाला उपस्थित न हो, तब तक प्राचीन जैन आगमों का सर्वथा त्याग संभव न था । आगमों का त्याग अनेक कारणों से करना आवश्यक हो गया था, किन्तु दूसरे प्रबल समर्थ साधन के अभाव में वह पूर्ण रूप से शक्य न था । इसी को लक्ष्य में रख कर आचार्य कुन्दकुन्द ने दिगम्बर संप्रदाय की आध्यात्मिक भूख की मांग के लिए अपने अनेक ग्रन्थों की प्राकृत भाषा में रचना की । यही कारण है, कि आचार्य कुन्दकुन्द के विविध ग्रन्थों में ज्ञान, दर्शन और चारित्र का निरूपण प्राचीन आगमिक शैली में और आगमिक भाषा में पुनरुक्ति का दोष स्वीकार करके भी विविध प्रकार से हुआ है । उनको तो एक-एक विषय का निरूपण करने वाले स्वतन्त्र ग्रन्थ बनाना अभिप्रेत था और समग्र विषयों की संक्षिप्त संकलना करने वाले ग्रन्थ ४ विशेष रूप से वस्त्रधारण, केवली- कवलाहार और स्त्री-मुक्ति श्रादि के उल्लेख जैन श्रागमों में थे, जो दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुकूल न थे । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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