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________________ २२८ आगम-युग का जैन-दर्शन वसति और प्रदेश (अनुयोग सू० १४८) । किन्तु यहाँ नयों का लक्षण नहीं किया गया। मूल नयद्वार के प्रसंग में सूत्रकार ने नयों का लक्षण किया है । सामान्य-नय का नहीं । उन लक्षणों में भी अधिकांश नयों के लक्षण निरुक्ति का आश्रय लेकर किए गए हैं। सूत्रकार ने सूत्रों की रचना गद्य में की है, किन्तु नयों के लक्षण गाथा में दिए हैं। प्रतीत होता है, कि अनुयोग से भी प्राचीन किसी आचार्य ने नय-लक्षण की गाथाओं की रचना की होगी। जिनका संग्रह अनुयोग के कर्ता ने किया है । वाचक ने नय का पदार्थ-निरूपण निरुक्ति और पर्याय का आश्रय लेकर किया है “जीवादोन पदार्थान् नयन्ति प्राप्नुवन्ति कारयन्ति साधयन्ति निवर्तयन्ति निर्भासयन्ति उपलम्भयन्ति व्यञ्जयन्ति इति नयाः ।" (१.३५) जीव आदि पदार्थों का जो बोध कराए, वह नय है । वाचक ने आगमिक उक्त तीन दृष्टान्तों को छोड़कर घट के दृष्टान्त से प्रत्येक नय का स्वरूप स्पष्ट किया है। इतना ही नहीं, बल्कि आगम में जो नाना पदार्थों में नयावतारणा की गई है, उसमें प्रवेश कराने की दृष्टि से जीव, नोजीव, अजीव, नोअजीव इन शब्दों का प्रत्येक नय की दृष्टि में क्या अर्थ है, तथा किस नय की दृष्टि से कितने ज्ञान अज्ञान होते हैं, इसका भी निरूपण किया है। नूतन चिन्तन : नयों के लक्षण में अधिक स्पष्टता और विकास तत्त्वार्थ में है, यह तो अनुयोग और तत्त्वार्थगत नयों के लक्षणों की तुलना करने वाले से छिपा नहीं रहता। किन्तु वाचक ने नय के विषय में जो विशेष विचार उपस्थित किया, जो संभवतः आगमकाल में नहीं हुआ था, वह ४४ प्रो० चक्रवर्ती ने स्याद्वादमंजरीगत (का० २८) निलयन दृष्टान्त का अर्थ किया है-House-uillding (पंचास्तिकाय प्रस्तावना पृ० ५५) किन्तु उसका 'वसति' से मतलब है। और उसका विवरण जो अनुयोग में है, उससे स्पष्ट है कि प्रो० चक्रवर्ती का अर्थ भ्रान्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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