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________________ आगमोत्तर जैन-दर्शन २११ पर्याय ये तीन पदार्थ बताए गए हैं (गा० ५) अन्यत्र भी ये ही तीन पदार्थ गिनाए हैं। किन्तु द्रव्य के लक्षण में केवल गुण को ही स्थान मिला है-“गुणाणमासओ दव्वं" ( गा० ६ )। वाचक ने गुण और पर्याय दोनों को द्रव्य लक्षण में स्थान दिया है-"गुणपर्यायवद् द्रव्यम् (५.३७) । वाचक के इस लक्षण में आगमाश्रय तो स्पष्ट है ही, किन्तु शाब्दिक रचना में वैशेषिक के "क्रियागुणवत्" (१.१.१५) इत्यादि द्रव्यलक्षण का प्रभाव भी स्पष्ट है । गुण का लक्षण उत्तराध्ययन में किया गया है कि “एगदम्वस्सिया गुणा" (२८.६) । किन्तु वैशेषिक सूत्र में "द्रव्याश्रय्यगुणवान्" (१.१:१६) इत्यादि है । वाचक अपनी आगमिक परम्परा का अवलम्बन लेते हुए भी वैशेषिक सूत्र का उपयोग करके गुण का लक्षण करते हैं कि "द्रव्याश्रया निर्गुणाः गुणाः।" (५.४०) । यहाँ एक विशेष बात का ध्यान रखना जरूरी है । यद्यपि जैन आगमिक परम्परा का अवलम्बन लेकर ही वाचक ने वैशेषिक सूत्रों का उपयोग किया है, तथापि अपनी परम्परा की दृष्टि से उनका द्रव्य और गुण का लक्षण जितना निर्दोष और पूर्ण है, उतना स्वयं वैशेषिक का भी नहीं है। बौद्धों के मत से पर्याय या गुण ही सत् माना जाता है और वेदान्त के मत से पर्यायवियुक्त द्रव्य ही सत् माना जाता है। इन्हीं दोनों मतों का निरास वाचक के द्रव्य और गुण लक्षणों में स्पष्ट है। उत्तराध्ययन में पर्याय का लक्षण है-"लक्खणं पज्जवाणं तु उभन्नो अस्सिया भवे ।" (२८.६) उभयपद का टीकाकार ने जैनपरम्परा के हार्द को पकड़ करके द्रव्य और गुण अर्थ करके कहा है, कि द्रव्य और गुणाश्रित जो हो, वह पर्याय है। किन्तु स्वयं मूलकार ने जो पर्याय के विषय में आगे चलकर यह गाथा कही है-- ८ "से कि तं तिनामे दवणामे, गुणणामे, पज्जवणामे ।" अनुयोग सू० १२४ । देखो, वैशेषिक-उपस्कार १.१.१५,१६ । Jain Education. International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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