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________________ वाद-विद्या-खण्ड १८५ तर्कशास्त्र ( पृ० ३९ ) उपायहृदय ( पृ० १६ ) और न्यायसूत्र में ( ५.२.१८ ) एक अज्ञान निग्रहस्थान भी है उसका कारण भी यापक हेतु हो सकता है क्योंकि अज्ञान निग्रहस्थान तब होता है जब प्रतिवादी वादी की बात को समझ न सके । अर्थात् वादी ने यदि यापक हेतु का प्रयोग किया हो तो प्रतिवादी शीघ्र उसे नहीं समझ पाता और निग्रहीत होता है । इसी अज्ञान को चरक ने अविज्ञान कहा है - वही ६५ । (२) स्थापक - प्रसिद्धव्याप्तिक होने से साध्य को शीघ्र स्थापित कर देने वाले हेतु को स्थापक कहते हैं । इसके उदाहरण में एक संन्यासी की कथा है, जो प्रत्येक ग्राम में जाकर उपदेश देता था कि लोकमध्य में दिया गया दान सादक होता है। पूछने पर प्रत्येक गांव में किसी भाग में लोकमध्य बताता था और दान लेता था । किसी श्रावक ने उसकी धूर्तता प्रकट की । उसने कहा कि यदि उस गांव में लोकमध्य था तो फिर यहां नहीं और यदि यहां है तो उधर नहीं । इस प्रकार वाद चर्चा में ऐसा ही हेतु रखना चाहिए कि अपना साध्य शीघ्र सिद्ध हो जाय और संन्यासी के वचन की तरह परस्पर विरोध न हो । यह हेतु यापक से ठीक विपरीत हैं और सद्धेतु है । चरक संहिता में वादपदों में जो स्थापना और प्रतिस्थापना का द्वन्द्व है उसमें से प्रतिस्थापना की स्थापक के साथ तुलना की जा सकती है । जैसे स्थापक हेतु के उदाहरण में कहा गया है कि संन्यासी के वचन में विरोध बता कर प्रतिवादी अपनी बात को सिद्ध करता है उसी प्रकार चरकसंहिता में भी स्थापना के विरुद्ध में ही प्रतिस्थापना का निर्देश है प्रतिस्थापना नाम या तस्या एव परप्रतिज्ञायाः प्रतिविपरीतार्थस्थापना" वहीं ३२ । ( ३ ) व्यंसक-प्रतिवादी को मोह में डालने वाले अर्थात् छलनेवाले हेतु को व्यंसक कहते हैं । लौकिक उदाहरण शकटतित्तिरी" है । किसी धूर्त ने शकट में रखी हुई तित्तिरी को देखकर शकट वाले से छल पूर्वक पूछा कि शकटतित्तिरी की क्या कीमत है ? शकटवाले ने उत्तर दिया - १६ “ लोगस्स मज्जाणण थावगहेऊ उदाहरणं" दशवं० नि० ८७ । १७ " सा सगडतित्तिरी - बंसगम्मि होई नायव्वा ।" वही ८८ । 'शकटतित्तिरी' के बो अर्थ हैं शकट में रही हुई तितिरी और शकट के साथ तित्तिरी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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