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आगम-युग का जन-दर्शन
१. इन्द्रियप्रत्यक्ष २. नोइन्द्रियप्रत्यक्ष
इन्द्रियप्रत्यक्ष में अनुयोगद्वार सूत्र ने
१ श्रोत्रेन्द्रिय-प्रत्यक्ष, ४ जिह्व ेन्द्रिय- प्रत्यक्ष,
३ घ्राणेन्द्रिय- प्रत्यक्ष,
२ चक्षुरिन्द्रिय- प्रत्यक्ष और ५ स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यक्ष – इन पांच प्रकार के प्रत्यक्षों का समावेश किया है।
नोइन्द्रियप्रत्यक्ष प्रमाण में जैनशास्त्र प्रसिद्ध तीन प्रत्यक्ष
ज्ञानों का समावेश है - १ अवधिज्ञान - प्रत्यक्ष, २ मन:पर्ययज्ञान प्रत्यक्ष और ३ केवलज्ञान- प्रत्यक्ष । प्रस्तुत में 'नो' का अर्थ है — इन्द्रिय का अभाव । अर्थात् ये तीनों ज्ञान इन्द्रिय- जन्य नहीं हैं । ये ज्ञान केवल आत्म-सापेक्ष हैं ।
जैन परम्परा के अनुसार इन्द्रिय जन्य ज्ञानों को परोक्ष ज्ञान कहा जाता है, किन्तु प्रस्तुत प्रमाण चर्चा परसंमत प्रमाणों के ही आधार से है, अतएव यहाँ उसी के अनुसार इन्द्रियजन्य ज्ञानों को प्रत्यक्ष - प्रमाण कहा गया है । नन्दीसूत्र में जो इन्द्रियजन्य ज्ञान को प्रत्यक्ष कहा है, वह भी पर सिद्धान्त का अनुसरण करके ही कहा गया है ।
वैशेषिक सूत्र में लौकिक और अलौकिक दोनों प्रकार के प्रत्यक्ष की व्याख्या दी गई है । किन्तु न्याय सूत्र " और मीमांसा दर्शन में ११ लौकिक प्रत्यक्ष की ही व्याख्या दी गई है । लौकिक प्रत्यक्ष की व्याख्या में दार्शनिकों ने प्रधानतया बहिरिन्द्रियजन्य ज्ञानों को लक्ष्य में रखा हो, यह प्रतीत होता है । क्योंकि न्यायसूत्र, वैशेषिकसूत्र और मीमांसा दर्शन की लौकिक प्रत्यक्ष की व्याख्या में सर्वत्र इन्द्रियजन्य ज्ञान को प्रत्यक्ष कहा है ।
मन इन्द्रिय है या नहीं इस विषय में न्याय सूत्र और वैशेषिक सूत्र विधि रूप से कुछ नहीं बताते । प्रत्तुत न्याय सूत्र में प्रमेय निरूपण में मन
९ वैशे० ३.१.१८; ९.१.११-१५ ।
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१.१.४ ।
१.१.४ ।
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