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________________ प्रमाण-खण्ड १४५ - : : : : X : X : X : को भी नहीं माना है और दिग्नाग के बाद भी अपनी तीन प्रमाण की परम्परा को ही मान्य रखा है, जो स्थिरमति की मध्यान्त विभाग की टीका से स्पष्ट होता है। नीचे दिया हुआ तुलनात्मक नकशा उपर्युक्त कथन का साक्षी है अनुयोगद्वार) १ प्रत्यक्ष २ अनुमान ३ उपमान ४ आगम भगवती व स्थानांग चरकसंहिता न्यायसूत्र विग्रहव्यावर्तनी उपाय हृदय सांख्यकारिका योगाचार भूमिशास्त्र ,, अभिधर्मसंगितिशास्त्र , विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि मध्यान्तविभागवृत्ति वैशषिकसूत्र प्रशस्तपाद दिग्नाग धर्मकीर्ति प्रत्यक्षप्रमाणचर्चा-हम पहले कह आए हैं कि अनुयोगद्वार में प्रमाण शब्द को उसके विस्तृत अर्थ में लेकर प्रनाणों का भेदवर्णन किया गया है । किन्तु ज्ञप्ति साधन जो प्रमाण ज्ञान अनुयोगद्वार को अभीष्ट है उसी का विशेष विवरण करना प्रस्तुत में इष्ट है। अतएव अनुयोगद्वार संमत चार प्रमाणों का क्रमशः वर्णन किया जाता है नकशे से स्पष्ट है, कि अनुयोगद्वार के मत से प्रत्यक्ष ज्ञान प्रमाण के दो भेद हैं X : X : X X X X X X X X 8. Pre-Dinnaga Buddhist Texts: Intro. P. XVII. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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