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________________ १०८ आगम-युग का जैन - वर्शन ८. देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से और (दो) देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से । अतएव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और (दो) अवक्तव्य हैं । ६. (दो) देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से और देश आदिष्ट है तदुभपर्यायों से । अतएव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध ( २ ) आत्माएँ हैं और अवक्तव्य है । (६) १०. देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से । अतएव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा नहीं है, और अवक्तव्य है । ११. देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और (दो) देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से । अतएव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा नहीं है और (दो) अवक्तव्य हैं । १२. (दो) देश आदिष्ट हैं असद्भावपंर्यायों से और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से । अतएव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध (दो) आत्माएँ नहीं हैं और अवक्तव्य है । ( ७ ) १३. देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से, देश आदिष्ट है असद्भाब - पर्यायों से और देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से । अतएव त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है, आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है । इसके बाद गौतम ने चतुष्प्रदेशिक स्कंध के विषय में वही प्रश्न किया है। उत्तर में भगवान् ने १६ भंग किए । जब फिर गौतम ने अपेक्षाकारण के विषय में पूछा, तब उत्तर निम्नलिखित दिया गया (१) १. चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्मा के आदेश से आत्मा है । ( २ ) २. चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध पर के आदेश से आत्मा नहीं है । (३) ३. चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है । ( ४ ) ४. देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से और देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से । अतएव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और आत्मा नहीं है । ५. देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से और ( अनेक ) देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से प्रतएव चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध प्रात्मा है और ( अनेक ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 1
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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