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आगम-युग का जैन-दर्शन
त्रिपिटक-गत संजयबेलट्टिपुत्तके मत-वर्णन को देखने से भी यह सिद्ध होता है कि तब तक में वही चार पक्ष स्थिर थे । संजय विक्षेपवादी था, अतएव निम्नलिखित किसी विषय में अपना निश्चित मत प्रकट न करता था।
१.
२.
१. परलोक है ? २. परलोक नहीं है ?. ३. परलोक है और नहीं है ? ४. परलोक है ऐसा नहीं, नहीं है ऐसा नहीं ? १. औपपातिक हैं ? २. औपपातिक नहीं हैं ? ३. औपपातिक हैं और नहीं हैं ? ४. औपपातिक न हैं, न नहीं हैं ? १. सुकृत दुष्कृत कर्म का फल है ? २. सुकृत दुष्कृत कर्म का फल नहीं है ? ३. सुकृत दुष्कृत कर्म का फल है और नहीं है ? ४. सुकृत दुष्कृत कर्म का फल न है, न नहीं है ?
४.
१. मरणानन्तर तथागत है ? । २. मरणानन्तर तथागत नहीं है ? 5. मरणानन्तर तथागत है और नहीं है ? . ४. मरणानन्तर तथागत न है और न नहीं है ?
जैन आगमों में भी ऐसे कई पदार्थों का वर्णन मिलता है, जिनमें विधि-निषेध-उभय और अनुभय के आधार पर चार विकल्प किए गए हैं । यथा
८० दीघनिकाय-सामअफलसुत्त.
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