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________________ १८ आगम-युग का जैन-दर्शन त्रिपिटक-गत संजयबेलट्टिपुत्तके मत-वर्णन को देखने से भी यह सिद्ध होता है कि तब तक में वही चार पक्ष स्थिर थे । संजय विक्षेपवादी था, अतएव निम्नलिखित किसी विषय में अपना निश्चित मत प्रकट न करता था। १. २. १. परलोक है ? २. परलोक नहीं है ?. ३. परलोक है और नहीं है ? ४. परलोक है ऐसा नहीं, नहीं है ऐसा नहीं ? १. औपपातिक हैं ? २. औपपातिक नहीं हैं ? ३. औपपातिक हैं और नहीं हैं ? ४. औपपातिक न हैं, न नहीं हैं ? १. सुकृत दुष्कृत कर्म का फल है ? २. सुकृत दुष्कृत कर्म का फल नहीं है ? ३. सुकृत दुष्कृत कर्म का फल है और नहीं है ? ४. सुकृत दुष्कृत कर्म का फल न है, न नहीं है ? ४. १. मरणानन्तर तथागत है ? । २. मरणानन्तर तथागत नहीं है ? 5. मरणानन्तर तथागत है और नहीं है ? . ४. मरणानन्तर तथागत न है और न नहीं है ? जैन आगमों में भी ऐसे कई पदार्थों का वर्णन मिलता है, जिनमें विधि-निषेध-उभय और अनुभय के आधार पर चार विकल्प किए गए हैं । यथा ८० दीघनिकाय-सामअफलसुत्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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