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________________ T किसी वस्तु को सर्वथा अस्ति' माना नहीं जा सकता । क्यों कि ऐसा मानने पर ब्रह्मवाद या सर्वेक्य का सिद्धान्त फलित होता है और शाश्वतवाद भी आ जाता है । इसी प्रकार सभी को सर्वथा 'नास्ति' मानने पर सर्वशून्यवाद या उच्छेदवाद का प्रसंग प्राप्त होता है । भगवान् बुद्ध ने अपनी प्रकृति के अनुसार इन दोनों वादों को अस्वीकार करके मध्य मार्ग से प्रतीत्यसमुत्पाद वाद का अवलम्वन किया है । जब कि अनेकान्त वाद का अवलम्बन कर के भगवान् महावीर ने दोनों वादों का समन्वय किया है । इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनागमों में अस्ति नास्ति, नित्यानित्य, भेदाभेद, एकानेक तथा सान्त - अनन्त इन विरोधी धर्म - युगलों को अनेकान्तवाद के आश्रय से एक ही वस्तु में घटाया गया है । भगवान् ने इन नाना वादों में अनेकान्तवाद की जो प्रतिष्ठा की हैं, उसी का आश्रयण करके बाद के दार्शनिकों ने तार्किक ढंग से दर्शनान्तरों के खण्डनपूर्वक इन्हीं वादों का समर्थन किया है । दार्शनिक चर्चा के विकास के साथ ही साथ जैसे- जैसे प्रश्नों की विविधता बढ़ती गई, वैसे वैसे अनेकान्तवाद का क्षेत्र भी विस्तृत होता गया । परन्तु अनेकान्तवाद के मूल प्रश्नों में कोई अंतर नहीं पड़ा। यदि आगमों में द्रव्य और पर्याय के तथा जीव और शरीर के भेदाभेद का अनेकान्तवाद है, तो दार्शनिक विकास के युग में सामान्य और विशेष, द्रव्य और गुण, द्रव्य और कर्म, द्रव्य और जाति इत्यादि अनेक विषयों में भेदाभेद की चर्चा और समर्थन हुआ है । यद्यपि भेदाभेद का क्षेत्र विकसित और विस्तृत प्रतीत होता है, तथापि सब का मूल द्रव्य और पर्याय के भेदाभेद में ही है, इस बात को भूलना न चाहिए । इसी प्रकार नित्यानित्य, एकानेक, अस्ति नास्ति, सान्त-अनन्त इन धर्म-युगलों का भी समन्वय क्षेत्र भी कितना ही विस्तृत व विकसित क्यों न हुआ हो, फिर भी उक्त धर्म-युगलों को लेकर आगम में चर्चा हुई है, वही मूलाधार है और उसी के ऊपर आगे के सारे अनेकान्तवाद का महावृक्ष प्रतिष्ठित है, इसे निश्चयपूर्वक स्वीकार करना · चाहिए । Jain Education International प्रमेय-खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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