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आगम-युग का जन-दर्शन
शब्द या जीव विशेष नारकादि शब्द भी ऊर्ध्वता सामान्य रूप जीव द्रव्य केही बोधक हैं ।
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जब यह कहा जाता है कि पुद्गल तीन प्रकार का है— प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत; तब पुद्गल शब्द का अर्थ तिर्यग्सामान्य रूप द्रव्य है । किन्तु जब यह कहा जाता है कि पुद्गल अतीत, वर्तमान और अनागत तीनों कालों में शाश्वत है, तब पुद्गल शब्द से ऊर्ध्वना सामान्य रूप द्रव्य विवक्षित है । इसी प्रकार जब एक ही परमाणु पुद्गल के विषय में यह कहा जाता है कि वह द्रव्यार्थिक दृष्टि से शाश्वत है, " तब वहाँ परमाणु पुद्गलद्रव्य शब्द से ऊर्ध्वता सामान्य द्रव्य अभिप्रेत है ।
पर्याय- विचार :
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जैसे सामान्य दो प्रकार का है, वैसे पर्याय भी दो प्रकार का है । तिर्यद्रव्य या तिर्यग्सामान्य के आश्रय से जो विशेष विवक्षित हों, वे तिर्यक् पर्याय हैं और ऊर्ध्वता सामान्य रूप ध्रुव शाश्वत द्रव्य के आश्रय से जो पर्याय विवक्षित हों, वे ऊर्ध्वतापर्याय हैं । नाना देश में स्वतन्त्र पृथक् पृथक् जो द्रव्य विशेष या व्यक्तियाँ हैं, वे तिर्यद्रव्य की पर्यायें हैं, उन्हें विशेष भी कहा जाता है । और नाना काल में एक ही शाश्वत द्रव्य की ऊर्ध्वता सामान्य की जो नाना अवस्थाएँ हैं, जो नाना विशेष हैं, वे ऊर्ध्वता सामान्य रूप द्रव्य के पर्याय हैं उन्हें परिणाम भी कहा जाता है । 'पर्याय' एवं 'विशेष' शब्द के द्वारा उक्त दोनों प्रकार की पर्यायों का बोध आगमों में कराया गया है । किन्तु परिणाम शब्द का प्रयोग केवल ऊर्ध्व तासामान्यरूप द्रव्य के पर्यायों के अर्थ में ही किया गया है । गौतम ने जब भगवान् से पूछा कि जीवपर्याय कितने हैं - संख्यात, असंख्यात, या अनन्त ? तब भगवान् ने उत्तर दिया कि जीवपर्याय अनन्त हैं । ऐसा कहने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा है कि असंख्यात नारक हैं, असंख्यात असुर कुमार हैं, यावत् असंख्यात स्तनित
६६ भगवती ८.१. ६७ भगवती १.४.४२. ६८ भगवती १४.४.५१२.
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