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________________ प्रस्तावना । ५९ (२) स्थानांगगत शान चर्चा द्वितीयभूमिकाकी प्रतिनिधि है । उसमें ज्ञानको प्रत्यक्ष और परोक्ष ऐसे दो मेदोंमें विभक्त करके उन्ही दोनें पंच ज्ञानोंकी योजना की गई है - ज्ञान (सूत्र० ७१ ) १ प्रत्यक्ष १ केवल १ अवधि १ जुमति Jain Education International २ नोकेवल १ भवप्रत्ययिक २ क्षायोपशमिक २ मन:पर्यय १ प्रमाणन० २.१० । १ आभिनिबोधिक १ श्रुतनिःसृत २ अनुतनिःसृत १ अर्थावग्रह २ व्यंजनावग्रह २ विपुलमति १ अर्थावग्रह १ अंगप्रविष्ट १२ २ परोक्ष 1 १ आवश्यक २ श्रुतज्ञान For Private & Personal Use Only २ व्यंजनावग्रह १ कालिक २ उत्कालिक इस नकशेमें यह स्पष्ट है कि ज्ञानके मुख्य दो भेद किये गये हैं, पांच नहीं। पांच ज्ञानोंको तो उन दो भेद - प्रत्यक्ष और परोक्षके प्रमेदरूपसे गिना है । यह स्पष्ट ही प्राथमिक भूमिकाका विकास है । इसी भूमिकाके आधार पर उमाखातिने मी प्रमाणोंको प्रत्यक्ष और परोक्षमें विभक्त करके उन्ही दोमें पंचज्ञानोंका समावेश किया है। बादमें होनेवाले जनतार्किकोंने प्रत्यक्ष के दो भेद बताये हैं- विकल और सकल' । केवलका २ अंगबाह्य २ आवश्यकव्यतिरिक्त www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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