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प्रस्तावना ।
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(२) स्थानांगगत शान चर्चा द्वितीयभूमिकाकी प्रतिनिधि है । उसमें ज्ञानको प्रत्यक्ष और परोक्ष ऐसे दो मेदोंमें विभक्त करके उन्ही दोनें पंच ज्ञानोंकी योजना की गई है -
ज्ञान (सूत्र० ७१ )
१ प्रत्यक्ष
१ केवल
१ अवधि
१ जुमति
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२ नोकेवल
१ भवप्रत्ययिक २ क्षायोपशमिक
२ मन:पर्यय
१ प्रमाणन० २.१० ।
१ आभिनिबोधिक
१ श्रुतनिःसृत २ अनुतनिःसृत
१ अर्थावग्रह २ व्यंजनावग्रह
२ विपुलमति
१ अर्थावग्रह
१ अंगप्रविष्ट १२
२ परोक्ष 1
१ आवश्यक
२ श्रुतज्ञान
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२ व्यंजनावग्रह
१ कालिक
२ उत्कालिक
इस नकशेमें यह स्पष्ट है कि ज्ञानके मुख्य दो भेद किये गये हैं, पांच नहीं। पांच ज्ञानोंको तो उन दो भेद - प्रत्यक्ष और परोक्षके प्रमेदरूपसे गिना है । यह स्पष्ट ही प्राथमिक भूमिकाका विकास है । इसी भूमिकाके आधार पर उमाखातिने मी प्रमाणोंको प्रत्यक्ष और परोक्षमें विभक्त करके उन्ही दोमें पंचज्ञानोंका समावेश किया है।
बादमें होनेवाले जनतार्किकोंने प्रत्यक्ष के दो भेद बताये हैं- विकल और सकल' । केवलका
२ अंगबाह्य
२ आवश्यकव्यतिरिक्त
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