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वर्णादिपर्यायी अविवक्षासे सूक्ष्मतम द्रव्य, द्रव्यपरमाणु कहा जाता है। यही पुल परमाणु है जिसे अम्यदर्शनिकोंने भी परमाणु कहा है, आकाराद्रव्यका सूक्ष्मतम प्रदेश क्षेत्रपरमाणु है । सूक्ष्मतम समय कालपरमाणु है। जब द्रव्यपरमाणुमें रूपादिपर्याय प्रधानतया विवक्षित हों तब वह भावपरमाणु है ।
द्रव्य परमाणु अच्छेच, अमेय, अदाह्य और अग्राह्य है। क्षेत्रपरमाणु अनर्ध, अमध्य, अप्रदेश और अविभाग है । कालपरमाणु अवर्ण, अगंध, अरस और अस्पर्श है। भावपरमाणु वर्ण, गंध, रस और स्पर्शयुक्त है।'
दूसरे दार्शिनिकोंने द्रव्यपरमाणुको एकान्त नित्य माना है तब भ० महावीरने उसे स्पष्टरूपसे नित्यानित्य बताया है -
प्रस्तावना ।
"परमाणुपोगले णं भंते किं सासर असासप १"
" गोयमा ! सिय सासए सिय असासए" ।
"से फेणद्वेणं ?"
"नोयमा !
बट्टयाए सासद वनपजवेहिं जाव फालपजवेर्हि अलासए ।" भगवती - १४.४.५१२.
अर्थात् परमाणु पुगल द्रव्यदृष्टिसे शाश्वत है और वही वर्ण, रस, गंध और स्पर्श पर्यायोंकी अपेक्षासे अशाश्वत है।
अन्यत्र द्रव्यदृष्टिसे परमाणुकी शाखतताका प्रतिपादन इन शब्दोंमें क्रिया है
"एस णं भंते! पोग्गले तीतमणतं सालयं समयं भुवीति वतव्यं लिया ?". "हंता गोयमा ! एस णं पोगाले......लिया ।"
"एस णं भंते! पोग्गले पप्पनं सासयं समयं भवतीति वक्तव्यं लिया ?" "हंता गोयमा !"
"एस णं भंते! पोग्गले अणागथमणतं 'सासयं समयं भविस्सतीति बतध्वं सिया ?" "हंता गोयमा !” भगवती ९.४.४२. तात्पर्य इतना ही है कि तीनों कालमें ऐसा कोई समय नहीं जब पुद्गल का सातस्य न हो इस प्रकार पुद्गल द्रव्यकी निष्यताका द्रव्यदृष्टिसे प्रतिपादन करके उसकी अस्मिता कैसे है इसका भी प्रतिपादन भ० महावीरने किया है
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"एस णं भंते! पोग्गले तीतमनंतं सासचं समयं लक्खी, समयं भलुक्ली, समयं grat षा अक्खी षा ? पुर्विषं च णं करणेणं अणेगवनं भणेगरूवं परिणामं परिणमति, अह से परिणामे निजिने भवति तथ पच्छा पगबने एंगरुवे सिया १"
"हंता गोयमा !...... एगरूवे लिया ।"
भगवती १४.४.५१०.
अर्थात् ऐसा संभव है कि अतीत कालमें किसी एक समयमें जो पुद्गल परमाणु रूक्ष हो वही अन्य समयमें अरूक्ष हो । पुद्गल स्कंध भी ऐसा हो सकता है। इसके अलावा वह एक देशसे रूक्ष और दूसरे देशसे अरूक्ष मी एक ही समय में हो सकता है। यह भी संभव है कि स्वभावसे या अन्य प्रयोगके द्वारा किसी पुद्गल में अनेकवर्णपरिणाम हो जायँ और वैसा परिणाम नष्ट होकर बादमें एकवर्णपरिणाम भी उसमें हो जाय। इस प्रकार पर्यायोंके परिवर्तन
१ भगवती २,०५. ।
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म्या प्रखावना ५
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