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प्रस्तावना |
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अनुसार उन सभी प्रश्नोंका उत्तर निषेधात्मक दिया है; क्यों कि ऐसा न कहते तो उनको उच्छेदबाद और शाश्वतबादकी आपत्तिका भय था । किन्तु भगवान् का मार्ग तो शाश्वतवाद और उच्छेदबादके समन्वयका मार्ग है अत एव उन प्रश्नोंका समाधान विधिरूपसे करने में उनको कोई भय नहीं था । उनसे प्रश्न किया गया कि क्या कर्मका कर्ता स्वयं है, अन्य है या उभय है ! इसके उत्तर में भ० महावीर ने कहा कि कर्मका कर्ता आत्मा स्वयं हैं; पर नहीं है और न खपरोभय' । जिसने कर्म किया है वही उसका भोक्ता है ऐसा माननेमें ऐकान्तिक शाश्वतवादकी आपत्ति भ० महावीरके मतमें नहीं आती; क्यों कि जिस अवस्थामें किया था उससे दूसरी ही अवस्था में कर्मका फल भोगा जाता है । तथा भोक्तृत्व अवस्थासे कर्मकर्तृत्व अवस्थाका मेद होनेपर भी ऐकान्तिक उच्छेदवादकी आपत्ति इसलिये नहीं आती कि मेद होते हुये भी जीव द्रव्य दोनों अवस्थामें एक ही मोजूद है ।
(७) द्रव्य और पर्यायका भेदाभेद ।
(अ) द्रव्यविचार - भगवती में द्रव्यके विचार प्रसंगमें कहा है कि द्रव्य दो प्रकारका है'
१. जीव द्रव्य और
२. अजीव द्रव्य ।
अजीव द्रव्यके मेद- प्रमेद इस प्रकार हैं
रूपी १ पुद्रलास्तिकाय
अजीवद्रव्य
सब मिलाकर छः द्रव्य होते हैं १ धर्मास्तिकाय, २ अधर्मास्तिकाय, ३ आकाशास्तिकाय, ४ जीवास्तिकाय, ५ पुद्गलास्तिकाय और ६ काल (अद्धासमय ) ।
इनमें से पांच द्रव्य अस्तिकाय कहे जाते हैं । क्यों कि उनमें प्रदेशोंके समूहके कारण rarat द्रव्य की कल्पना संभव हैं ।
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पर्याय विचार में पर्यायोंके भी दो भेद बताये हैं" -
१. जीवपर्याय और २ अजीवपर्याय
अरूपी
१ धर्मास्तिकाय
२ अधर्मास्तिकाय
३ आकाशास्तिकाय
४ अद्धासमय
पर्याय अर्थात् विशेष समझना चाहिए ।
सामान्य- द्रव्य दो प्रकारका है - तिर्यग् और ऊर्ध्वता । जब कालकृत नाना अवस्थाओं में किसी द्रव्यविशेषका एकत्व या अन्वय या अबिच्छेद या ध्रुवस्व विवक्षित हो तब उस एक अन्वित अविच्छिन्न व या शाश्वत अंशको ऊर्ध्वतासामान्यरूप द्रव्य कहा जाता है।
१. भगवती १.६५२ । २ भगवती २५.१ । २५.४ । ३ भगवती २.१०.११७ । स्थानांगस्• ४४१ । ४ भगवती २५. ५. । प्रज्ञापना पद ५. ।
न्या• प्रस्तावना ४
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