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जीवक नित्यानित्यता ।
अव्याकृत कहने की आवश्यकता ही नही । उन्हों ने जो व्याकरण किया है उसकी चची मीचे की जाती है।
भ० महावीरने जीवको अपेक्षाभेदसे शाश्वत और अशाश्वत कहा है। इसकी स्पष्टताके लिये निम्न संवाद पर्याप्त है
" जीवा णं भन्ते किं सासया असासया ?"
"गोयमा ! जीवा सिथ सासया लिय असा सथा । गोयमा ! दध्वदुयाए सासया भावट्र्याए अलालया ।" भगवती - ७.२.२७३. ।
स्पष्ट है कि द्रव्यार्थिक अर्थात् द्रव्यकी अपेक्षासे जीव निष्य है और भाव अर्थात् पर्यायकी दृष्टिसे जीव अनित्य है ऐसा मन्तव्य भ० महावीरका है। इसमें शाश्वतवाद और उच्छेदवाद दोनों के समन्वयका प्रयत्न है। चेतन - जीव द्रव्यका विच्छेद कमी नहीं होता इस दृष्टिसे जीवको निस्य मान करके शाश्वतत्रादको प्रश्रय दिया है और जीवकी - नाना अवस्थाएँ जो स्पष्टरूपसे विच्छिन्न होती हुई देखी जाती हैं उनकी अपेक्षासे उच्छेदवादको भी प्रश्रय दिया । उन्होंने इस बातका स्पष्टरूप से स्वीकार किया है कि ये अवस्थाएँ अस्थिर हैं इसीलिये उनका परिवर्तन होता है किन्तु चेतन द्रव्य शाश्वत स्थिर है। जीवगत बालत्व- पाण्डित्यादि अस्थिर धोका परिवर्तन होगा जब कि जीवद्रव्य तो- शाश्वत ही रहेगा ।
" से नूणं भंते अधिरे पलोकुर, नो थिरे पलोडर, अधिरे भज्जर नो थिरे भज्जर, लासप बालए बालियतं मलालयं, लालप पंडित पंडियतं असासयं १"
"हंता गोयमा ! अथिरे पलोहर जान पंडियां असासयं ।" भगवती - १.९.८० ।
द्रव्यार्थिक नयका दूसरा नाम अव्युच्छित्ति नय है और भावार्थिकनयका दूसरा नाम व्युच्छि चिनय है इस से भी यही फलित होता है कि द्रव्य अविच्छिन भुव शाश्वत होता है और पर्याय का विच्छेद - नाश होता है अत एव वह अभुत्र अनित्य अशाश्वत है। जीव और उसके पर्याय का अर्थात् द्रव्य और पर्याय का परस्पर अमेद और भेद मी इष्ट है इसी लिये जीव द्रव्यको जैसे शाश्वत और अशाश्वत बताया, इसी प्रकार जीवके नारक, वैमानिक आदि विभिन्न पर्यायोंको भी शाश्वत और अशाश्वत बताया है। जैसे जीवको द्रव्यकी अपेक्षासे अर्थात् जीव द्रव्यकी अपेक्षासे निष्य कहा वैसे ही नारक को भी जीव द्रव्यकी अपेक्षा से निस्य कहा है । और जैसे जीव द्रव्यको नारका दि पर्यायकी अपेक्षासे अनिष्म कहा है वैसे ही नारक जीव को मी नारकत्वरूप पर्यायकी अपेक्षासे अनित्य कहा है
"मेरइया णं भंते किं सालया असासया ?"
"गोयमा । लिय सासया सिय असासया ।" "से केणणं भंते एवं बाइ १ ।"
"गोयमा ! अब्वोच्छन्तिणयकुयाए सासया, वोच्छित्तिणयद्वयाए भसासया । एवं जब बेमाणिया ।" भगवती ७.३.२७९ ।
'जमालीके साथ हुए प्रश्नोत्तरोंमें भगवान् ने जीवकी शाश्वतता और अशाश्वतताके मन्तब्यका जो स्पष्टीकरण किया है उससे निष्यतासे उनका क्या मतलब है व अनिष्यतासे क्या मतलब है ! यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है
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