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________________ प्रस्तावना । ૨૪૦ इन्ही शास्याचार्यने मेघाभ्युदयकाव्यकी वृत्तिकी मी रचना की है। उसकी प्रशस्तिमें अपना परिचय देते हुए लिखा है कि वे पूर्णतगच्छके वर्धमानसूरिके शिष्य थे - "श्री पूर्णत लग संबंधिश्री वर्धमानाचार्य व पदस्थापित भी शान्तिसूरिविरचिता मेघाभ्युदयकाव्यदृतिः”” । to rear 'जेसलमीरभाण्डागारीयग्रन्थानां सूची' की प्रस्तावना 'अप्रसिद्धप्रन्थकृत्परिचय' ( पृ० ५९) में लिखा है कि शान्याचार्यने पांच यमककाव्योंकी टीका करनेकी प्रतिज्ञा की थी' तदनुसार उन्होंने वृन्दावनकाव्य, घटखर्परकाव्य, मेघाभ्युदयकाव्य, शिवभद्रकाव्य और चन्द्रदूतकाव्य इन पांच यमककाव्यों की टीकाओंकी रचना की थी । to का अनुमान है कि ये आचार्य वि० ११ से १२ वी शताब्दीके बीच में हुए हैं। ३ बृहद्रच्छीय शान्तिसूरि - इनके गुरुका नाम नेमिचन्द्र है। इन्होंने अपना परिचय पृथ्वीचन्द्र चरित्रकी प्रशस्तिमें दिया है । पृथ्वीचंद्रचरित्र बृहत् और लघु की रचना विक्रमर्स ० ११६१ में हुई है। धर्मरत्न प्रकरणमें पृथ्वीचन्द्र चरित्र देखनेकी प्रेरणा की गई है । अतएव उसके रचयिता शान्तिसूरि भी यही हो सकते हैं। ४ डिगच्छीय शान्तिसूरि- जैनप्रन्थावली ( पृ० २८५ ) में भक्तामरस्तोत्रकी इति खंडिगच्छीय शांतिसूरके नाम दर्ज है। ५ भद्रेश्वर शिष्य शान्तिरि गर्गर्षि सूरिके कर्मविपाकके ऊपर परमानन्दने टीका लिखी है । उसकी प्रशस्तिमें उन्होंने आचार्यपरंपरा है उससे पता चलता है कि वे मद्रेश्वरसूरिके शिष्य शान्तिसूरके शिष्य अभयदेवके शिष्य थे । श्री मो. द. देसाईने अनुमान किया है कि परमानन्द वि. सं. १२२१ में विद्यमान थे (देखो, जैन. सा० सं० इ० पृ० २८० ); अतएव प्रस्तुत शास्याचार्यका समय बारहवीका उत्तरार्ध निश्चित होता है । - इनके गच्छका ठीक निश्चय करना कठिन है । ६ संढेरगच्छ के शान्त्याचार्य - सं० १५९७ के एक लेखसे पता चलता है कि सढेर गच्छ दोशायाचार्य हुए हैं। दोनों सुमतिके शिष्य थे । किन्तु एक १५९७ सं० में हुए और दूसरे उनसे कई पीढी पहले हुए - प्राचीन लेखसंग्रह, लेख नं० ३३६ । 1 ७ नाणकीयगच्छके शान्तिरि- इनका एक शिलालेख सं० १२६५ का 'प्राचीन जैन लेखसंग्रह' में उद्धृत है। देखो लेख नं० ४०३ । उसमें उनके गुरुका नाम कल्याणविजय और गच्छकानाम नाणकीय निर्दिष्ट है । ८ नागेन्द्रकुलके शान्त्याचार्य - उपदेशमाला वृत्ति ( कर्णिका ) के रचयिता उदयप्रभने अपनी गुरुपरंपराका वर्णन करते हुए कहा है कि नागेन्द्रकुलके महेन्द्रसूरिके पट्टपर शान्तिसूरि हुए । उनका परिचय उन्होंने इस प्रकार दिया है. - Jain Education International 1 जेसलमीर भाण्डागारीयप्रस्थानां सूची पु० ४३ । २ "वृन्दावनादिकाव्यानां यमकैरतिदुर्बिदाम् । वक्ष्ये मधुप्रबोधाय पञ्चानां वृत्तिमुत्तमाम् ॥" जैन साहित्यको संक्षिप्त इतिहास, पृ० २३८ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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