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________________ ere बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंधी और सिंघी जैन ग्रन्थ मा ला * [ स्मरणालि 18 मे अनन्य आदर्शपोषक, कार्यसाधक, उत्साहप्रेरक और सहदय मेहास्पद बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंधी, जिन्होंने मेरी बिशिड प्रेरणासे, अपने स्वर्गवासी साधुचरित पिता भी डालचंदजी सिंचीके पुण्यकारण निमिच, इसे 'सिंघी जैन प्रन्थमाका' की कीर्तिकारिणी स्थापना करके, इसके लिये प्रतिवर्ष हजारों रुपये खर्च करने की आदर्श उदारता प्रकट की थी और जिनकी ऐसी बसाधारण ज्ञानभक्तिके साथ अनम्य मार्थिक उदारवृति देख कर, मैंने भी अपने जीवनका विडि शक्तिशाली और मूल्यवान् बहुत ही शेष अवशेष उत्तर काक, इस प्रभ्थमाकाके ही विकास और प्रकाशके किये सर्वात्मना रूपले समर्पित कर दिया था; तथा जिन्होंने इस प्रन्थमालाका विगत १३-१४ वर्षों ऐसा सुंदर, समृद्ध और सर्वादरणीय कार्यफल निष्पक्ष हुआ देख कर भविष्यमें इसके कार्यको और अधिक प्रगतिमान तथा विखीर्ण रूपमें देखनेकी अपने ग्रीनकी एक मात्र प्ररस अभिलाषा रखी थी और तदनुसार, मेरी प्रेरणा और योजनाका अनुसरण करके प्रस्तुत ग्रन्थमालाकी प्रबन्धात्मक कार्य-व्यवस्था 'भारती 'विद्याभवन' को समर्पित कर देनेकी महती उदारता दिखा कर जिन्होंने इसके भावीके सम्बन्धमें निर्मि हो जानेकी मासा की थी, वह पुण्यवान्, साहित्यरसिक, उदारमनस्क, अमुवामिकाषी, ग्रभिनन्दनीय आमा, अब इस प्रन्थमाकाके प्रकाशनोंको प्रत्यक्ष देवानेके किये इस संसार में विद्या नहीं है। सन् १९४४ की इकाई मानकी पीं वारीसको ५९ वर्षकी अवस्थामें वह महान् मात्मा हु कोकमेंसे प्रस्थान कर गया। उनके भव्य, भावरणीय, स्पृहणीय, और हाथी जीवनको अप कामकारणांजलि' प्रदान करनेके विमिन्स, उनके जीवनका कुछ संक्षिप्त परिचय यहाँ - योग्य होगा । करना सिंमीजीके जीवन के साथके मेरे सास खास कारणोंका विस्तृत भवन, मैंने उनके ही ' अन्थ' के रूपमें प्रकाशित किये गये 'भारतीय विद्या' नामक पत्रिकाके तृतीय भागकी अनुपूर्व किया है । उनके सम्बन्धमें विशेष जाननेकी इच्छा रखने वाले वाचकोंको यह 'मारक ग्रन्थ' देखना चाहिये । बाबू भी बहादुर सिंहजीका जन्म बंगालके मुर्शिदाबाद परगनेमें स्थित अजीमगंज नामक खान संवत् १९४१ में हुआ था। वह बाबू डालचंदजी सिंधीके एकमात्र पुत्र थे। उनकी माता श्रीमती - कुमारी सभीमगंज ही बैद इदम्बके बाबू जयचंदजीकी सुपुत्री थी । भी मचकुमारीकी एक बहन जगतसेवीके यहाँ ब्याही गई थी और दूसरी बहन सुप्रसिद्ध नाहर कुटुम्बमें ब्याही गई थी। क ० सुप्रसिद्ध जैन स्कॉलर और अग्रणी व्यकि बाबू पूरणचंद्रजी माहर, बाबू बहादुर सिंहनी सिंचीके मौसेरे भाई थे । सिंवीजीका ब्याह बाबर- अजीमगंशके सुप्रसिद्ध धनाढ्य जैनग्रहत्व कमी सिंहनीकी पौत्री और छत्रपत सिंहजीकी पुत्री श्रीमती तिककसुंदरीके साथ, संवत् १९५४ में हुआ था । इस प्रकार श्री बहादुर सिंहनी सिंपीका कोम्बिक सम्बन्ध बंगालके खास प्रसिद्ध जैन इम्बोंके सा प्रगाड रूपसे संकलित था । बाबू भी बहादुर सिंहजीके पिता बाबु डालचंदजी सिंची बंगालके जैन महाजनोंमें एक बहुत ही प्रसिद और सचरित पुरुष हो गये हैं। वह अपने अकेले पुरुषार्थ और स्वउद्योगसे, एक बहुत ही साधारण स्थितिके व्यापारीकी कोटिमें से कोव्यधियंतिक स्थितिको पहुँचे थे और सारे बंगादमें एक सुप्रतिष्ठित और प्रामाणिक व्यापारीके में उन्होंने स्नाति मास की भी क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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