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१. आराहणापडाया 218. न हु सुज्झई ससल्लो जंह भणियं सासणे धुयरयाणं । उद्धरियसबसलो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो॥२१८॥
आलोयणदारं १५॥ [गा. २१९-३३ सोलसमं वयउच्चारणादारं] 219. एवं सुगुरुसमीवे उद्धियसल्लो महल्लसंवेगो।।
खवगो गुरुं नमित्ता विसुद्धभावो पुणो भणइ ॥ २१९॥220. भयवं! भवजलहीए दुहजलयरभीसणे महाघोरे ।
तारणतरीसमाणे महव्वए उक्खिव पुणो वि ॥ २२० ॥ 221. इय खवगवयणमायन्निऊण सुगुरू अखंडचरणस्स ।
तस्सारोवइ विहिणा महव्वयाई, तओ खवगो ॥ २२१ ॥ 222. नवकारं भणिऊणं 'पढमे भंते ! महव्वए पाणा०' ।
इच्चाइ भणइ पढमं वयं तु जा बीयवेरमणं ॥ २२२ ॥ 223. पुंण सनमुक्कारं तं बिइयं तइयं पि वेलमुच्चरिउं ।
सेसे महव्वए वि य तओ मुसावायमाईए ॥ २२३ ॥ 224. निसिभोयणपज्जते अनमुक्कारे भणित्तु वेलतिगं ।
'इच्चेइयाई' इच्चाइदंडयं भणइ तिक्खुत्तो ॥ २२४ ॥ 225. अह जइ खंडियचरणो नियगच्छगओ य तस्स उट्ठवणा ।
कीरइ, दिसिबंधो पुण पुग्विल्लो होइ उ पमाणं ॥ २२५ ॥ 226. परगच्छ आगयस्स उ निरईयारस्स नेव उट्ठवणा ।
दिसिबंधो कायव्यो, तह पजते वयारोवो ॥ २२६ ॥ 227. पासत्थाईणं पुण भणिओ उद्यावणाविही सव्वो।
'दिसिबंधतो नियमा, अह जइ सुस्सावगो कोई ॥ २२७॥ 228. संथारगपव्वजं पडिवजइ तस्स जिणगिहाईसु ।
पवनविही सव्वो कायव्वो, नेव उट्ठवणा ॥ २२८॥
.. आलोचनाद्वारम् १५॥ A.। आलोयणद्वारम् A. विना ॥ २. 'माइनि° A. विना ॥ ३. पुणरवि सनमुक्कारं बिइयं . ॥ ४. दिसिबंधो नो नियमा A. । दिसिबंधो तो नियमा C.॥
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