SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૨ पाईणायरियविरइया 229. जइ पुण भत्तपरिन्नं पडिवजइ सावगो ससम्मत्तो । नवकारपुव्वयं तो पढमाणुवयं समुच्चरइ ॥ २२९॥ 230. पुणरवि सनमुक्कारं बियवारं, तइयवारमवि तत्तो। नवकारविरहियाई वयाइं सेसाई वारतिगं ॥ २३०॥ 231. अह न समत्तधरो जंइ सम्मत्तं तिहतिहा स पडिवजे । सनमुक्कारं एवं बियवारं तइयवारं पि ॥ २३१॥ 232. तत्तो पढमाणुवयं पंचनमुक्कारपुव्वमुच्चरइ । एवं तु बीयवारं तह तइयं वारमुञ्चरिउं ॥ २३२॥ 233. तो सेसाई वयाइं अनमुक्काराई भणइ तिक्खुत्तो। सावयखवगो दु-तिहा थूलमुसावायमाईणि ॥ २३३॥ वैयउच्चारणादारं १६॥ [गा. २३४-७१. सत्तरसमं चउस्सरणदारं] 234. आरोवियवयभारो संवेगपरो पउत्तवरविणओ। चउगइभवभयभीओ चउरो सरणे अह करेइ ॥ २३४ ॥ 235. अरहंत १ सिद्ध २ साहू ३ धम्मो जिणभासिओ ४ इमे चउरो । चउगइदुहनिद्दलणे सरणं पावेइ सुकयत्थे ॥ २३५ ॥ 236. अरहंताणं सरणं भवभयहरणं करेइ संविग्गो । सिरकमलरइयकरकमलकोरओ संहरिसं खवगो ॥ २३६॥ 237. गभट्ठियतिन्नाणा जे सुरवेइविहियचवणकलाणा । वरसुमिणसूइयजिणा सरणं ते इंतु जगसरणा ॥ २३७॥ 238. धुवमड्ढरत्तजम्मा छप्पन्नकुमारिविहियसुइकम्मा । सुरवइविरइयजम्माभिसेयकम्मा जिणा सरणं ॥ २३८॥ १. जइ तो सनमुक्कारमुच्चरइ सम्म। पुणरवि सनमुक्कारं बियधारं A. विना ॥ २. व्रतोच्चारद्वारम् १६॥ A.| व्रतानामुच्चारद्वारम् १६ ॥ A.विना ॥ ३. °लणा स° A. विना॥१. सहरिसं भणइ C. F. ॥ ५. वरवि° F. ॥ ६. °सुविण° F. ॥ ७. यरम्मा A. विना॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy