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पाईणायरियविरइया 229. जइ पुण भत्तपरिन्नं पडिवजइ सावगो ससम्मत्तो ।
नवकारपुव्वयं तो पढमाणुवयं समुच्चरइ ॥ २२९॥ 230. पुणरवि सनमुक्कारं बियवारं, तइयवारमवि तत्तो।
नवकारविरहियाई वयाइं सेसाई वारतिगं ॥ २३०॥ 231. अह न समत्तधरो जंइ सम्मत्तं तिहतिहा स पडिवजे ।
सनमुक्कारं एवं बियवारं तइयवारं पि ॥ २३१॥ 232. तत्तो पढमाणुवयं पंचनमुक्कारपुव्वमुच्चरइ ।
एवं तु बीयवारं तह तइयं वारमुञ्चरिउं ॥ २३२॥ 233. तो सेसाई वयाइं अनमुक्काराई भणइ तिक्खुत्तो। सावयखवगो दु-तिहा थूलमुसावायमाईणि ॥ २३३॥
वैयउच्चारणादारं १६॥
[गा. २३४-७१. सत्तरसमं चउस्सरणदारं] 234. आरोवियवयभारो संवेगपरो पउत्तवरविणओ।
चउगइभवभयभीओ चउरो सरणे अह करेइ ॥ २३४ ॥ 235. अरहंत १ सिद्ध २ साहू ३ धम्मो जिणभासिओ ४ इमे चउरो ।
चउगइदुहनिद्दलणे सरणं पावेइ सुकयत्थे ॥ २३५ ॥ 236. अरहंताणं सरणं भवभयहरणं करेइ संविग्गो ।
सिरकमलरइयकरकमलकोरओ संहरिसं खवगो ॥ २३६॥ 237. गभट्ठियतिन्नाणा जे सुरवेइविहियचवणकलाणा ।
वरसुमिणसूइयजिणा सरणं ते इंतु जगसरणा ॥ २३७॥ 238. धुवमड्ढरत्तजम्मा छप्पन्नकुमारिविहियसुइकम्मा ।
सुरवइविरइयजम्माभिसेयकम्मा जिणा सरणं ॥ २३८॥
१. जइ तो सनमुक्कारमुच्चरइ सम्म। पुणरवि सनमुक्कारं बियधारं A. विना ॥ २. व्रतोच्चारद्वारम् १६॥ A.| व्रतानामुच्चारद्वारम् १६ ॥ A.विना ॥ ३. °लणा स° A. विना॥१. सहरिसं भणइ C. F. ॥ ५. वरवि° F. ॥ ६. °सुविण° F. ॥ ७. यरम्मा A. विना॥
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