SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. आराहणापणगं २११ 2377. अव्वो ! जणस्स मोहो धम्मं मोतूण गमणसुसहायं । देहस्स कुणइ पेच्छसु तद्दियहं सव्वकज्जाई ॥१९३॥ 2378. णत्थि पुहईए अण्णो अविसेसो जारिसो इमो जीवो । देहस्स कुणई सव्वं, धम्मस्स ण गेण्हए नामं ॥१९४॥ 2379. धम्मेण होइ सुगई देहो वि विलोट्टएं मरणकाले । तह वि कयग्यो जीवो देहस्स सुहाई चिंतेइ ॥१९५॥ 2380. छारस्स होइ पुंजो, अहवा किमियाण सिलिसिलेंताण । सुक्खइ रविकिरणेहिं वि, होहिइ पूयस्स व पवाहो ॥१९६॥ 2381. भत्तं व सउणयाणं, भक्खं वा साण-कोल्हुयाईणं । होहिइ पत्थरसरिसं अव्वो ! सुक्कं व कटं वा ॥१९७॥ 2382. ता एरिसेण संपई अहमसरीरेण जइ तवो होइ । लद्धं जं लहियव्वं मा मुच्छ कुणसु देहम्मि ॥१९८॥ अवि य2383. देहेण कुणह धम्मं अंतम्मि विलोट्टए पुणो देहं । फग्गुणमासं खेलह परसंतेणेव पितॄणं ॥१९९॥ 2384. ताविजउ कुणह तवं भिण्णं जीवाओ पुग्गलं देहं । कट्ठजलंतिंगाले परहत्थेणेव तं जीव! ॥२०॥ 2385. देहेण कुणह धम्म अंतम्मि विलोट्टए पुणो एयं । उदृस्स पामियंगस्स वाहियं जं तयं लद्धं ॥ २०१॥ 2386. पोग्गलमइयं कम्मं हम्मउ देहेण पोग्गलमएणं । रे जीव! कुणसु एवं विलं विलेण फोडेसु ॥ २०२॥ 2387. अवस-वसएहिं देहो मोत्तव्यो ता वरं सवसएहिं । जो हसिररोइरीए वि पाहुणो ता वरं हसिरी ॥ २०३॥ 2388. रे. जीव ! तुम भण्णसि निसुणेतो मा करे गयणिमीलं। देहस्स उवरि मुच्छं णिब्बुद्धिय ! मा करेजासु ॥२०४॥ किंच रे जीव ! तए चिंतणीयं, अवि य १.इ एवं ध मुकु० प्रत्य० ।। २. °ए गमणका खे० ॥३. इ असारदेहेण जइ मुकु० प्रत्य० ॥ ४. कट्ठसुजलियंगारे प° खे०॥ ५. पामियस्स य जं वाहिययं तयं लद्धं खे०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy