SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१० सिरिउज्जोयणसूरिविरइयकुवलयमालाकहाअंतग्गयं 2366. णाणामणि-मोत्तियसंकुलाओ आबद्धइंदचावाओ । रयणाणं रासीओ मोत्तुं मा रज्ज अत्थेसु ॥ १८२ ॥ 2367. ते के वि देवदूसे 'दिव्वंगे दिव्वभोगफरिसिल्ले । मोतूण तुमं तइया संपइ मा रज कंथडए ॥ १८३॥ 2368. वररयणणिम्मियं पिव कणयमयं कुसुमरेणुसोमालं। चइऊण तत्थ देहं कुण जरदेहम्मि मा मुच्छं ॥ १८४॥ 2369. मा तेसु कुण नियाणं सग्गे किर एरिसीओ रिद्धीओ। मा 'चिंतेसु य सुपुरिस !, होइ सयं चेव जं जोग्गं ॥ १८५॥ 2370. देहं असुइसगभं भरियं पुण मुत्त-पित्त-रुहिरेण । रे जीव ! इमस्स तुम मा उवरिं कुण« पडिबंधं ॥ १८६ ॥ 2371. पुण्णं पावं च दुवे वचंति जिएण नवरि सह एए। जं पुण इमं सरीरं कत्तो तं चलइ ठाणाओ? ॥१८७॥ 2372. मा मह सीयं होहिइ ठइओ विविहेहिं वत्थ-पोत्तेहिं । वचंते उण जीए खलस्स कण्णं पि नो चलियं ॥१८८॥ 2373. मा मह उण्हं होहिइ इमस्स देहस्स छत्तयं धरियं । तं जीवगर्मणसमए खलस्स सव्वं पि पम्हुटुं ॥१८९॥ 2374. मा मह छुहा भवीहिइ इमस्स देहस्स संबलं बूढं । • तं जीवगमणकाले कह व कयग्घेण णो संरियं १ ॥१९॥ 2375. मा मे तण्हा होहिइ मरुत्थलीसुं पि पाणियं बूढं । तेण चिय देह ! तुमं खलगहिओ किं ण सुकरण ? ॥१९१॥ 2376. तहलालियस्स तहपालियस्स तहगंध-मल्लसरहिस्स। खलदेह ! तुज्झ जुत्तं पयं पि णो देसि गंतव्वे ॥१९२॥ १. दधणुयामो मुकु० प्रत्य० ॥ २. °ज विहवेसु मुकु. प्रत्य० ॥ ३. देवंगे मुकु. प्रत्य० ।। ४. मा सुमर के मुकु० प्रत्य० ॥ ५. चिंतेहिसि सुवुरिस मुकु० प्रत्य० ॥ ६. जं विहियं खे० ॥ • ७. °सु अणुबं° मुकु० प्रत्य० ॥ ८. नो सिणं ॥ मुकु० प्रत्य० ॥ ९. भरियं मुकु. प्रत्य० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy