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________________ १८१ ३. पज्जंताराहणा 2046. बहुहाकलंबवालुयपुलिणे गुरुभारभरियरहवहणं । भन्जियगं पिव भजण, रसियं पिव गालणाईयं ॥ १२५॥ 2047. वेल्लुरियं व कप्पण, चुन्नणगं चुन्नियं व णेगविहं । तत्तकवल्लीतलणं, लोहंगाराइखावणयं ॥ १२६ ॥ 2048. इय नारयाण दुक्खं अणंतकाले वि जं मए विहियं । तं सव्वं खामेमी संपइ तिरिए खमावेमि ॥१२७॥ 2049. तत्थ उ ते पंचविहा, एगिदियमाइ जाव पंचिंदी । एगिदिय पंचविहा, बायर-सुहुमा य पुढवाई ॥१२८॥ 2050. तत्थ मए सुहमाणं अपजत्त-पजत्तयाण जं दुट्ठ । विहियं तमहं गरिहे, अओ परं बायरे खामे ॥१२९॥ 2051. मट्टी खडी य तुरी ऊसं अरणिट्ट-अब्भय-पलेवा । वन्नी गेरू लोणं विदुम हेमाइधाऊओ ॥ १३०॥ 2052. रयण-मणि-फलिह-मणसिल-सुंचल-हरियाल-सिंधव-रसिंदा । हिंगुल-सोवीरंजण-कक्कर-पांसाणपमुहा उ ॥ १३१॥ 2053. पुढविक्काइयजीवा भवं भमंतेण जे मए के वि । अभिहयमाइपएहिं विराहिया ते वि खामेमि ॥ १३२॥ 2054. कूवाइ-वट्ठिउदयं हरतणु हिम करग ओस घणउदही । महियाइ आउजीवा जे वहिया ते अहं खामे ॥१३३॥ 2055. कणगाऽसणि विज्जुक्का मुम्मुरि इंगाल-जालमाईया । तेउक्काइय जीवा परियाविय ते वि खामेमि ॥१३४॥ 2056. घण-तणु-मंडलि-मुह-सुद्ध-गुंज-उन्भामगुक्कलीवाया। एमाइ वाउजीवे खामेमी जे मए निहए ॥ १३५॥ 2057. वणसइजिय दुह वुत्ता सुत्ते, साहारणा य पत्तेया । एगाऽणंताण तणू जाणं, साहारणा ते उ॥१३६ ॥ १. पाहाग सं १ सं २ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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