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________________ १४२ सिरिवीरभदायरियविरइया 1616. कोहेण परवहं पुण मरिउं पत्थेइ अप्पसत्थमिणं । निवउग्गसेण-बारवइघाइणो जह पसिद्धाइं ॥ ६८४॥ [अपसत्थनियाणं] 1617. देविय-माणुसभोए नारीसर-सिट्ठि-सत्यवाहाई । हरि-हलहर-चक्कहरे पत्थेमाणं च भोगकयं ॥ ६८५॥ [भोगकयनियाणं] 1618. संजमसिहरारूढो घोरतवपरक्कमो तिगुत्तो वि । इति जो कुणइ नियाणं संसारं सो पवढेइ ॥ ६८६॥ 1619. अगणिय जो मुक्खसुहं कुणइ नियाणं असारसुहहेउं । सो कायमणिकएणं वेरुलियमणिं पणासेइ ॥ ६८७॥ 1620. पुरिसत्ताइनियाणं पि मुक्खकामा मुणी न इच्छंति । जं पुरिसत्ताइकओ भवो(१ वे) भवो(१ वे) घोरसंसारो ॥ ६८८ ॥ 1621. दुक्खक्खय कम्मक्खय समाहिमरणं च बोहिलाभो य। एवं पत्थेयव्वं, न पत्थणिज्जं तओ अण्णं ॥ ६८९॥ 1622. पन्भट्ठबोहिलामा मायासलेण आसि पूइमुही। दासी सायरदत्तस्स पुष्फदंतस्स विरया वि ।। ६९० ॥ 1623. मिच्छत्तसल्लदोसा पियधम्मो साहुवच्छलो संतो। बहुदुक्खे संसारे सुइरं भमिओ मिरीई वि ॥ ६९१ ॥ 1624. उज्झियनियाणसलो पंचहिं समिईहिं तिहि उ गुत्तीहि । पंचमहव्वयरक्खं कयसिवसोक्खं पसाहेइ ६ ॥ ६९२ ॥ 1625. कोहाईण विवागं नाऊण य तेसि निग्गहेण गुणं । निग्गिण्ह तेण सुपुरिस ! कसायकलिणो पयत्तेणं ।। ६९३॥ 1626. जं अइतिक्खं दुक्खं जं च सुहं उत्तमं तिलोईए । तं जाण कसायाणं वुडि-क्खयहेउयं सव्वं ॥ ६९४ ॥ 1627. कोहेण नंदमाई निहया, माणेण फरुसरामाई । निहणमणज्जा य गया मायाए पंडरजाई ॥ ६९५ ॥ १. तज वि ला० सं० १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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