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________________ १४० सिरिवीरभदायरियविरइया 1590. सीउण्ह वाय वरिसं तण्हं उण्हं छुहं पिवासं च । दुस्सिज्जं दुभत्तं सहइ य वहई य गुरुभारं ॥ ६५८॥ 1591. गायइ वायइ नच्चइ कंखइ विलवेइ मलइ असुई पि । तुण्णेइ विणइ जायइ कुलम्मि जाओ वि गंथत्थी ॥ ६५९ ॥ 1592. एवं चिटुंतस्स वि संसइओ होइ अत्थलाहो से । न य संचीयइ अत्थो सुचिरेण वि मंदभागस्स ॥ ६६०॥ 1593. जइ पुण कहंचि संचियमेही अत्थो तहा वि से नत्थि । तित्ती गंथेहिं सया, लाहे लोहो पवडूइ जं ॥ ६६१॥ 1594. जह इंधणेण अग्गी, जह य समुद्दो नईसहस्सेहिं । तह जीवस्स न तित्ती अत्थि तिलोए वि लद्धम्मि ॥ ६६२॥ 1595. आहम्मइ मारिज्जइ रुंभइ भिज्जइ य निरवराहो वि। आमिसहत्थो खत्थो खन्नइ पक्खीहिं जह पक्खी ॥ ६६३॥ 1596. माया-पिति-पुत्तेसु वि दारेसु वि नेय जाइ वीसंभं । गंथनिमित्तं जग्गइ रक्खंतो सव्वरत्तिं पि ॥ ६६४ ॥ 1597. सोयइ विलवइ कंदइ नढे गंथम्भि होइ य विसण्णो। पव्वाइ निवाइजइ वेवइ उक्कंठिओ होइ ॥ ६६५॥ 1598. अंतोमु(१ हु)तं डज्झइ पुरिसो नढे सयम्मि अत्थम्मि । उम्मत्तो होइ नरो गगहिओ खित्तचित्तो वा ॥६६६ ॥ 1599. इंदियमयं सरीरं गिण्हइ गंथं च देहसुक्खत्थं । इंदियसुहाभिलासो गंथग्गहणे तओ सिद्धो ॥ ६६७ ॥ 1600. गंथेसु घडियहियओ होइ दरिदो भवेसु बहुएसु । गंथनिमित्तं कम्मं किलिट्ठहियो समाइयइ ॥ ६६८॥ 1601. एतेसिं दोसाणं मुच्चइ गंथं परिचयं पुरिसो। तविवरीए य गुणे पावइ न य पावइ किलेसं ॥ ६६९॥ 1602. गंथचाओ इंदियनिवारणं अंकुसो व्व हत्थिस्स । नयरस्स खाइया इव इंदियगुत्ती असंगत्तं ।। ६७० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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