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________________ १३८ सिरिवीरभदायरियविरइया 1564. दरहसिय- जंपिएहि य महिलाणऽद्धच्छिपिच्छिएहिं च । लज्जा - मज्जायाण य मेरं पुरिसो अइक्कमइ || ६३२ ॥ 1565. अमुणियमणपरिकम्मो सम्मं को नाम नासिउं तरइ ? । वम्महसबरसरोहे दिट्ठच्छोहे मयच्छीणं ॥ ६३३॥ 1566. आलोयण मित्तेणं जं मुच्छं दिंति ताओ पुरिसस्स । तेण हयमहिलियाणं नयणाई विसालयाई फुडं ॥ ६३४ ॥ 1567 घणमालाओ व दूरुण्णमंतसुपओहराओ वहू॑ति । 2 मोहविसं महिलाओ आलक्कविसं व पुरिसस्स ॥ ६३५ ॥ 1568 परिहरसु तओ तासिं दिट्ठी दिट्ठीविसस्स व अहिस्स । जं रमणिनयणबाणा चरितपाणे विणासंति ॥ ६३६॥ 1569 मारेइ इक्कसिं चिय तिव्वविसभुयंग वग्घसंसग्गी । इत्थी संसग्गी पुण अणतखुत्तो नरं हणइ ॥ ६३७॥ 1570 महिलासंसग्गीए अग्गीय व जं च अप्पसारस्स । मणं व मणो मुणिणो वि हंत ! सिग्धं चिय विलाइ ॥ ६३८ ॥ 1571. इय गुण [गण] मूलगिंग थी संसगिंग च जो परिचयइ । स सुण बंभचेरं नित्थरइ जसं च वित्थरइ ॥ ६३९ ॥ 1572. जइ वि परिचत्तसंगो तवतणुयंगो तहा वि परिवडइ । महिला संसग्गीए उवकोसघरुस्सिओ व्व रिसी ॥ ६४० ॥ 1573. मुणिवर ! मेहुणसण्णा जइ हुज्ज कयाइ भोहदोसेण । ता हुज्जसूवउत्तो पंचविहे इथिवेरग्गे ॥ ६४१ ॥ 1574 जायं पंकम्मि जलम्मि वड्ढियं पंकयं जह न तेण । लिप्पइ, मुणी वि एवं थीपंकजलाउले लोए || ६४२ ॥ 1575. मायागहणे बहुदोससावए अलियदुमगणे भीमे । असुइकडले वि ( ? ) मुणी मुज्झंति न इत्थिरण्णम्मि || ६४३ ॥ 1576. सिंगारतरंगाए विलासवेलाइ जुव्वणजलाए । पहसियफेगाइ मुणी नारिनईए न वुब्भंति || ६४४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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