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________________ २. आराहणापडाया * 1551. कोडीओ पंच भवे लक्खाईं अट्ठसट्ठि पंच सया । नवनउई य सहस्सा चुलसीया वाहिसंखा से || ६१९ ॥ 1552. पीणत्थणन मियंगी जा पुव्वं नयणमणहरा आसि । सच्चिय जरघुणजज्जर बीभच्छा होइ दुप्पिच्छा ॥ ६२० ॥ 1553., जा सव्वसुंदरंगी सविलासा पढमजुव्वणक्कता । सच्चेव जराजुण्णा अमणुण्णा होइ लोयस्स ॥ ६२१ ॥ 1554. जह वज्झो निज्जंतो पियइ सुरं खाइ असण- तंबोलं । तह मच्चुवग्घघत्था विसए सेविंति मूढनरा ।। ६२२ ॥ 1555. असुइ वणपूइगंधं सेवंता महिलियाइ कुणिमकुडिं । सोआहिमाणिणो जे ते लोए हुंति हसणिज्जा ।। ६२३ ॥ 1556. एते अत्र्थे देहम्मि चिंतयंतस्स सुड्डु पुरिसस्स । इत्थीदेहं तुं इच्छा कह हुज्ज सचिणस्स ? ।। ६२४ ।। असुइत्तं ॥ 1557. खोभेइ पत्थरो जह दहे पडतो पसण्णमवि पंकं । खोभेइ सहायं कम (१)पसण्णमवि तरुण संसग्गी ॥ ६२५ ॥ 1558 कलुसीकयं पि उदयं विमलं जह होइ क्यगजोएण । तह मोहकलुसियमणो जीवो वि हु वुड्ढसेवाए || ६२६ ॥ 1559 पुरिसस्स अँप्पसत्थो भावो तिहिं कारणेहिं संभवइ । विरहम्मि १ अंधयारे २ कुसीलसेवाइ ३ सयराहं ॥ ६२७ ॥ 1560 जह चैव चारुदत्तो गोट्टीदोसेण आवई पत्तो । पत्तो य उण्णई सो पुणो वि तह वुड्डुसेवाए ॥ ६२८ ॥ 1561. तम्हा वुड्रसहावे तरुणे बुड्ढे य सुड्डु सेवंता । गुरुकुलमवि न मुयंता तरंति बंभव्वयं धीरा ॥ ६२९ ॥ 1562. अचलोयणेण हिययं पयलइ पुरिसस्स अप्पसारस्स । पिच्छंतस्स य बहुसो इत्थीणं वयण - रमणाणि ॥ ६३० ॥ 1563. उज्झइ परलोयभयं, तओ य लज्जं च, कुणइ वीसंभं । वीसंभाओ पणओ, पणयाओ रई हवइ पच्छा ।। ६३१ ॥ Jain Education International १३७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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