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सिरिवीरभदायरियविरइया 1462. जह मक्कडओ पक्कप्फलाई दबृण धाइ धाओ वि ।
इय जीवो परविहवं विविहं दट्टण अहिलसइ ॥ ५३०॥ 1463. न य तं लहइ, न भुंजइ, भुत्तुं पि न कुणइ निव्वुइं तस्स ।
सव्वजएण वि जीवो लोहाइद्धो न तिप्पेइ ॥ ५३१॥ 1464. जो पुण अत्थं अवहरइ तस्स सो जीवियं पि अवहरइ ।
जं सो अत्थकएणं उज्झइ जीयं, न उण अत्यं ॥ ५३२॥ 1465. हुंतम्मि तम्मि जीवइ सुहं च सकलत्तओ तओ लहइ ।
अत्थं तस्स हरतेण तेण से जीवियं पि ह(?हि)यं ॥ ५३३॥ 1466. ता जीवदयं परमं धम्म गहिऊण गिण्ह माऽदिण्णं ।
जिण-गणहरपडिसिद्धं लोयविरुद्धं च अहमं च ॥५३४॥ 1467. धंतं पि संजमंतो चित्तण कलिंचमित्तमविदिण्णं ।
तणलहुओ होइ नरो अप्पच्चइओ य चोरो व्व ॥५३५॥ 1468. चोरो परलोयम्मि वि निवडइ अइतिव्ववेयणे नरए ।
तिरिएसु य, तम्मि पुणो पावइ तिक्खाइं दुक्खाइं ॥ ५३६ ॥ 1469. मणुयत्तणे वि दीणो दारिदोवदुओ धणासंसी।
खिजंतो वि न पावइ न य से धणसंचओ होइ ॥५३७॥ 1470. परदन्वहरणबुद्धी सिरिभूई दुक्खदारुणे नरए।
पडिओ तत्तोऽणंतं भमिओ संसारकंतारं ॥ ५३८॥ 1471. एए सव्वे दोसा न हुंति परदव्वहरणविरयस्स ।
तन्विवरीया य गुणा हुँति सया दत्तभोइस्स ॥ ५३९ ॥ 1472. देविंद-राय-गहवइ-सागरि-साहम्मिउग्गहं तम्हा। उग्गहविहिणा दिणं गिण्हसु सामण्णसाहणयं ॥५४०॥
[अदत्तादाणवेरमणं] ॥ 1473. रक्खाहि बंभचेरं च बंभगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं ।
निच्चं पि अप्पमत्तो पंचविहे इत्थिवेरग्गे ॥५४१॥
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