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सिरिवीरभदायरियविरहया 1412. नाणुवओगो तम्हा खवयस्स विसेसओ सया भणिओ।
जह चक्कट्ठवओगो चंदगविज्झं करितस्स ॥ ४८०॥ 1413. नाणपईवो पजलइ जस्स हियए विसुद्धलेसस्स ।
जिणदिट्ठमुक्खमग्गे पणासणभयं न से अत्थि ॥ ४८१॥ 1414. सूई जहा ससुत्ता न नासई कयवरम्मि पडिया वि ।
जीवो तहा ससुत्तो न नासइ गओ वि संसारे ॥४८२॥ 1415. नाणुजोउज्जोओ नाणुज्जोयस्स नत्थि वाघाओ ।
दीवेइ खित्तमप्पं सूरो, नाणं जगमसेसं ॥ ४८३॥ 1416. नाणं पयासयं, सोहओ तवो, संजमो य गुत्तिकरो ।
तिहं पि समाओगे मुक्खो जिणसासणे दिट्ठो ॥ ४८४ ॥ 1417. नाणुजोएण विणा जो इच्छइ मुक्खमग्गमवगंतुं ।
गंतुं कडिल्लमिच्छइ अंधलओ अंधयारे सो ॥ ४८५॥ 1418. खंडसिलोगेहिं जवो जइ मरणाओ वि रक्खिओ राया ।
पत्तो य स सामण्णं, किं पुणजिणवृत्तसुत्तेण ? ॥ ४८६ ॥ 1419. दढसुप्पो सूलहओ पंचनमुक्कारमित्तसुयनाणो ।
उवउत्तो कालगओ जाओ देवो महिड्डीओ ॥ ४८७ ॥ 1420. न य तम्मि देस-काले सव्वो बारसविहो सुयक्खंधो ।
सक्का(को) अणुचिंतेउं बलिएण समत्थचित्तेणं ॥४८८॥ 1421. एगम्मि वि जम्मि पए संवेयं कुणइ वीयरागमए ।
सो तेण मोहजालं छिंदइ अज्झप्पजोगेणं ५॥४८९॥ 1422. परिहर छज्जीववहं सम्मं मण-वयण-कायजोगेहिं ।
जीवविसेसे नाउं जावज्जीवं पयत्तेणं ॥ ४९० ॥ 1423. पुढवि-दगाऽगणि-वाया इक्विक्का सुहुम-बायरा हुंति ।
साहारण पत्तेओ दुविहो य वणस्सई होइ ॥ ४९१ ॥ 1424. साहारणो य दुविहो सुहुमो तह बायरो य नायव्वो।
पज्जत्ताऽपज्जत्ता भेया सव्वे वि बावीसं ॥ ४९२ ॥
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