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________________ १२५ २. आराहणापडाया 1399. वंदणभत्तीमित्तेण चेव महिलाहिवो उ पउमरहो । देविंदपाडिहेरं पत्तो जाओ गणहरो य ३ ॥४६७ ॥ 1400. आराहणापुरस्सरमणण्णहियओ विसुद्धलेसागो । संसारक्खयकरणं ता मा मुच्ची नमुक्कारं ॥४६८॥ 1401. अरहंतनमुक्कारो इक्को वि हविज जो मरणकाले । सो जिणवरेहिं दिट्ठो संसारुच्छेयणसमत्थो ॥४६९ ॥ 1492. भावनमुक्कारविवज्जियाई जीवेण अकयकजाई।। गहियाणि य मुक्काणि य अणंतसो दव्वलिंगाई ॥ ४७०॥ 1403. चउरंगाइ वि सेणाइ नायगो जह पयट्टगो होइ । तह भावनमुक्कारो मरणे तव-नाण-चरणाणं ॥ ४७१॥ 1404. आराहणापडायागहणे हत्थो भवे नमुक्कारो । तह सुगइमग्गगमणे रहो व्व जीवस्स अप्पडिहो ॥ ४७२॥ 1405. अण्णाणी वि य गोवो आराहित्ता मओ नमुक्कारं । चंपाए सिट्ठिसुओ सुदंसणो विस्सुओ जाओ ४ ॥ ४७३ ॥ 1406. नाणोवओगरहिओ न तरइ नियचित्तनिग्गहं काउं । नाणं अंकुसभूयं मत्तस्स व गुरुगइंदस्स ॥ ४७४ ॥ 1407. विजा जहा पिसायं सदुवउत्ता करेइ पुरिसवसं । नाणं हिययपिसायं सटुवउत्तं तह करेइ ॥ ४७५ ॥ 1408. उवसमइ किण्हसप्पो जह मंतेण विहिणा पउत्तेण । तह हिययकिण्हसप्पो सुटुवउत्तेण नाणेण ॥ ४७६ ॥ 1409. आरण्णओ वि मत्तो हत्थी नियमिजए वरत्ताए । जह, तह नियमिज्जइ सो नाणवरत्ताइ मणहत्थी ॥ ४७७॥ 1410. जह मक्कडओ खणमवि मज्झत्थो अच्छिउं न सक्केइ । तह खणमवि मज्झत्यो विसएहिं विणा न होइ मणो ॥ ४७८॥ 1411. तम्हा सो तड्डणओ मणमक्कडओ जिणोवएसेणं । काउं सुत्तनिबद्धो रामेयव्वो सुहज्झाणे ॥ ४७९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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